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वर्ष २ किरण ४]
स्त्री-शिक्षा
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हो जाय, घर-घर में सुख और शान्ति का साम्राज्य उप- दूरसे ही तिलाञ्जलि देवे । इस प्रकार के आचरण द्वारा स्थिति होवे और समाज अवनति के गर्त से निकलकर उन्नति प्राप्त करके हम अपने प्राचीन गौरवको फिरसे उन्नतिके शिखर पर आरूढ़ होवे, साथही इस प्रकार प्राप्त कर सकती हैं । अन्यथा उन्नति सर्वथा असम्भव स्त्री जाति योग्य शिक्षा प्राप्त करके मभ्यताकी आधुनिक है । अतः अब हम सबको मिलकर अपने उत्थानका पूरा दौड़में भाग लवे और परस्पर की मुठभेड़में कार्य प्रयत्न करना चाहिए और दिखला देना चाहिए कि परायणता, उदारता, श्रमशीलता, विद्यानुरागता, नम्रता, जागृत हुआ स्त्री समाज देश धर्म तथा समाजकी क्या देशप्रेम, स्वच्छता आदि गुण ग्रहण करें और पुरुषोंके कुछ उन्नति कर सकता है ? औद्धत्य, भोगविलास, चटकमटक आदि अवगुणोंको
मंगल-गीत
उत्कण्ठे ! छिपकर न रहो अब, समारम्भ हो नर्तन ! अाज कराओ पलट-पलट, कल्पना-चित्र दिग्दर्शन !!
उठो, उमंगो ! कैद रह चुकीं, बहुत काल, अब खेलो ! आज़ादी कह रही----उठो,
अपना हक़ बढ़कर लेलो !! हर्ष ! विश्व-उपवन में निर्भय--.. होकर प्रति-दिन फूलो ! दुख ढकेल पाताल-लोक में.... म्वर्ग-लोक को छू लो !!
मनोनीत सुख वारिद आओ, बरषो घुमड़-घुमड़ कर ! प्राणों में भर दो नवीनता,
का असीम-सा सागर !! मन मंगल-मय तन मंगल-मय---- मंगल-मय वसुधा हो !
ओज, तेज, संगीत, राग-मय---- प्रगटित एक प्रभा हो !!
भगवत्स्व
रूप जैन 'भगवत्'