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अनेकान्त
[ माघ, वीर - निर्वाण सं० २४३५
कायर, कलहप्रिय तथा बाह्याडंबर व श्रंगार में मग्न रहने वाली होती जा रही है, और इसलिए हमारी सन्तानभी पतनोन्मुख हो रही है ।
अब प्रश्न यह उठ सकता है कि जब हम पहले बहुत उन्नति दशा में थीं, तो हमारी यह अवस्था क्योंकर हुई? इसके लिए हम कह सकतीं हैं कि जबसे हिन्दुस्तानकी कुछ परिस्थितियों के वश स्त्री शिक्षाको पाप समझा जाने लगा, पढ़ी लिखी स्त्रियोंको कलङ्क लगाने लगे और उनकी हँसी उड़ने लगी- कहा जाने लगा कि क्या पढ़कर उन्हें नौकरी करना है या पण्डित बनना है, तभी से हमारी यह शोचनीय दशा हुई है । इस में सन्देह नहीं कि भारतकी नारियां सदासे पतियोंकी अनुगामिनी रही हैं, उनकी आज्ञाही उनके लिए सदा आप वाक्य रही हैं, वे पति आज्ञा पालन अपना कर्तव्य और धर्म समझती रहीं, परन्तु पतियोंने उनके प्रति अपना कर्तव्य भुला दिया वे मनमाने ऐसे नियम बनाते चले गये, जिनसे स्त्रियां मूर्ख होती गई और पुरुषों की दृष्टिमें गिरती गई। अन्त में वे केवल तृमि और बच्चे पैदा करने की मशीनें ही रह गई । इस तरह हमारा जीवन भार रूप होने लगा और होता जारहा है तथा इन्हीं कारणांसे हमारा पतन हुआ है।
से योग्य शिक्षा प्राप्त करके निकलें और स्कूलोंमें शिक्षिकाके पद को सुशोभित करें । आधुनिक शिक्षा में कन्याओंको ग्रहप्रबन्धादि तथा धार्मिक शिक्षा देनेका कोई प्रबन्धही नहीं हैं, जिसका कि हमको अपने जीवनकी प्रत्येक घड़ी में काम पड़ता है। अतः हमें गणित, इतिहास आदिके अति रिक्त ग्रहप्रबन्ध शिशुपालन, शिल्पकला, धार्मिक तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयभी पूर्ण रूपसे अपनाने चाहिए, जिसमें हमें वास्तव में शिक्षित होनेका सौभाग्य प्राप्त हो सके और हम शिक्षा को बदनाम करनेका अवसर प्राप्त न कर सकें। शिक्षा प्राप्त कर लेने पर हमारे हृदय में नम्रता, सेवाधर्म, देशभक्ति तथा धर्म पर दृढ़ता आदि गुण उत्तरोत्तर वृद्धि को प्रात होने चाहिएं । अवगुणों की उत्पत्ति हममें इसलिए भी होजाती है कि शालाओं में जो शिक्षा लड़कोंके लिए नियत हैं, वही हम लोगों को भी दी जाती है और जो हमारी प्रकृति के बिलकुल विरुद्ध होती है। ऐसी शिक्षा जिसका असर हम पर उल्टा पड़ता है और हम लाभके बदले हानि उठाती हैं। इस कारण शिक्षा प्रचार के साथ-साथ हमारा प्रधान लक्ष शिक्षा प्रणालीको उत्तम बनाना भी है, जिससे हमें वास्तविक लाभहो, हम सच्ची उन्नति कर सकें और समाजको उन्नति बनाने में सहायक हो सके ।
समाज तो वास्तवमें तब तक उन्नति करही नहीं सकता जब तक कि स्त्रियां सुशिक्षता नहीं होंगी, क्योंकि रथ के दोनों पहिये बराबर होनेसे ही रथ ठीक गतिसे चल सकता है अन्यथा नहीं । नारी समाजका उत्थानही देश धर्म तथा समाजको और ख़ासकर ग्रहस्थ जीवनको उन्नत बना सकता है। अशिक्षा के कारण हमारा ग्रहस्थ जीवनभी अत्यन्त कष्टकर होता जारहा है। हम भीरु,
परन्तु हर्ष का विषय हैं कि इस उन्नतिके युगमें कुछ समय से फिर हमारा ध्यान स्त्रीशिक्षाकी ओर आकर्षित हुआ है और हम अपनी त्रुटिको अनुभव करने लगे हैं । अतएव अब वह समय आ गया कि हम समाज के प्रत्येक हिस्से में स्त्रीशिक्षा के प्रचारका बीड़ा उठालें और उसे कोने कोने में पहुँचा कर ही चैन लें, ताकि वह समय शीघ्रही हमारे नेत्रोंके सन्मुख उपस्थित होजाय, जब कि हमारे समाजकी प्रत्येक स्त्री सुशिक्षता दृष्टि गोचर हो, हमारा स्त्रीसमाज फिरसे सुसंगठित