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वर्ष २ किरण ४]
स्त्री-शिक्षा
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करना, नितप्रति मंदिर हो आना, अष्टमी चतुर्दशीको या कि नहीं ? वह कैसी है और उसका हम पर क्या हरे फल फूल न खाना, छानकर पानी पीना, बस इतने असर होता है, इसका विचार करने पर हम प्रत्यक्ष देखते ही पर उनके धर्मकी इति है । सच पूछा जाय तो इसमें हैं कि आधुनिक शिक्षा प्राप्त करके कन्यायें प्रायः अभि उनका कोई अपराध भी नहीं, जब उनको शिक्षाही मानिनी होजाती हैं, अपने सन्मुख किसीको कुछ समनहीं मिली, उनको इससे अधिक कुछ बतायाही नहीं झती ही नहीं, फैशनका भूत उन्हें परेशान किये रहता गया तो वह क्या कर सकती हैं ? अतः अब स्त्री जाति है । वे क्रीम, पाउडर तथा चटक मटक व व्यर्थकी बातों का कर्तव्य है कि वह अपने समाजमें स्त्री शिक्षाके में फंसे रहनाही अधिक पसंद करती हैं, घरका कार्य प्रचारका बीड़ा उठाय । अब यह समय उपस्थित होगया करना पसंद नहीं करतीं, तथा निर्लज्ज भी होजाती हैं ? है जब हम समाज के कोने-कोने में स्त्री-शिक्षाके प्रचारकी इसलिये बहुतसे माता-पिता शिक्षा को पसंद नहीं करते
आवाज़ पहुँच कर अपना कार्य प्रारंभ कर दें । स्त्रियोंके और इच्छा रहते हुए भी अपनी कन्याओं को शिक्षा नहीं शिक्षित होने पर ही समाज पूर्ण उन्नतिको पहुँच सकता है दिला सकते। वे कहते हैं कि सी शिक्षितों से तो अन्यथा नहीं।
अशिक्षित ही अच्छी हैं, और उनका यह कहना प्राचीन समय में शिक्षित माताओंक. गर्भस वास्तव में सत्य भी है । परन्तु साथ ही उन्हें यहभी सोचना ही राजा श्रेणिक जैसे धर्म प्रेमी, अकलंक निष्क- चाहिए कि यह दोष किसका है ? शिक्षाका नहीं बल्कि लंक जैसे धर्म पर मिटनेवाले वीर पैदा हुए थे, जिन्होंने आधुनिक शिक्षा प्रणाली का है, जिसके सुधार की नितांत धर्मके लिये अपना सर्वस्व अर्पण किया । यदि हम अपने आवश्यकता है । शिक्षा यह नहीं कहती कि तुम शिक्षा धर्मकी तथा समाजकी उन्नति चाहते हैं तो हमारा प्रधान प्राप्त करके योग्यता के अतिरिक्त अयोग्यता प्राप्त करो। कर्तव्य है कि हम पृणरूपसे स्त्री शिक्षाको अपनाय, पुस्तकों में यह बात नहीं लिखी होती कि तुम फैशनबिल समाजमें फिरसे अंजना, सीता, गुगणमाला तथा मनोरमा हो जाओ या घमाइन बन जाश्री। जैसी सतियां पैदा करें । परन्तु यह तभी हो सकेगा जब फलतः यह कर्तव्य तो हमारा ही है कि हम अपने हम पूर्णरूपसे अपने ममाज में विद्याका प्रचार करने के लिए शिक्षाकी उत्तमोत्तम प्रणाली स्वीकार करें। योग्य लिये दत्तचित्त हो जायेंगी और अपनी कन्याओंको पूर्ण जैन स्कुल स्थापित करें, उनमें उत्तमोत्तम पुस्तकोंको शिक्षित बनाने का दृढ़ संकल्प कर लेगी। इस समय अन्य स्थान दें तथा योग्य शिक्षिकाय नियत करें । शिक्षजातियों में बहुतसी ग्रेजुएट, वकील, वैरिस्टर तथा डाक्टर काओं का योग्य होना परमावश्यक है, कारण क्योंकि देवियां मिलेंगी, परन्तु जैन जानिमें खोजने पर शायद प्रायः उनके ही ऊपर कन्याओंका भविष्य निर्भर रहता दो-चार ग्रेजुएटही निकल आयें। इससे अधिककी श्राशा है। यदि वे स्वयं योग्य होगी तो कन्याओंकी भी योग्य बिल्कुल व्यर्थ है । अतः हमको भी इस उन्नतिकी दौड़ शिक्षा देने में सफल हो सकेंगी और यदि स्वयं ही अमें शीघ्र-से-शीघ्र भाग लेना चाहिए।
योग्य होंगी तो दूसरोको क्या योग्य बना सकेंगी ? ऐसी अब प्रश्न यह है कि प्राधुनिक उन्नति के साथ-साथ हालत में योग्य शिक्षिकाओं के लिए हमें मुख्य मुख्य हमें आधुनिक शिक्षाप्रणाली को भी अपनाना चाहिए स्थानों पर ट्रेनिंग स्कूल स्थापित करने चाहिये, जिनमें