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नारासमत्थान
स्त्री-शिक्षा
[ ले.- श्रीमती हेमलता जैन, हिन्दी प्रभाकर ]
अाधुनिक उन्नतिक
धुनिक उन्नतिके युगमें इस संसार की प्रत्येक जातियां जानती भी नहीं, उन्हें इतना भी मालूम नहीं
"जाति उन्नति के पथ पर अग्रसर होरही हैं और कि जैन जातिका भी संसार में कुछ अस्तित्व है। इस स्वयंको सबसे अधिक उन्नत बनानेके प्रयासमें संलग्न है। अवनतिका प्रत्यक्ष कारण यही है कि प्राचीन समय में परन्तु खेदका विषयहै कि जैनजाति और विशेषकर जैन समाजकी देवियां पूर्ण शिक्षित होती थीं, उनसे अच्छी स्त्री-जाति अब भी गहरी निद्रामें निमग्न है ! इस वैज्ञा- शिक्षासम्पन्न, कर्मनिष्ट तथा धर्मप्रेमी संतान पैदा होती निक उन्नति के युगमें भी वह चुप्पी साधे हुए है ! इसका थीं और उसके कारण समाज उन्नत होता था, समाजका कारण विचारने पर केवल अशिक्षाही मालूम पड़ता है। प्रत्येक अंग सुदृढ़ होता था, प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म जैन जाति अशिक्षा के घोर अंधकार में डूबी हुई है ! व समाज पर किए गए आक्षेपांको दर करनेकी योग्यता देशकी समस्त स्त्री जतियां जब अविद्या का आवरण रखता था, अपने धर्मकी विशेषताए' स्वयं जानता था पूरी तरह उतारकर फेंकने का निश्चय करके प्रगतिको और औरों को समझानेकी योग्यता रखता था, जिसका अपना रही हैं, तब जैन-स्त्री-जातिही इस दौड़में सबसे फल धर्म की प्रगति होता था। परन्तु खेद है कि अब पीछे है और यही मुख्य कारण है कि जैन समाज दिन अशिक्षिता होने के कारण अबलाए स्वयंही यह नहीं जानती प्रति दिन भवनति के गर्त में फँसता जारहा है। कि धर्म क्या है ? फिर उनकी संतान में धर्म के प्रति
एक समय था जब कि जैनजातिका साम्राज्य चारों ओर ज्ञान व श्रद्धा किस प्रकार पैदा हो सकती है । उन बेचाछाया हुआ था, देशके कोने-कोनेमें जैनधर्मका प्रचार था रियोंको यह पताही नहीं कि धर्मका असली महत्व क्या और एक समय अब है कि जनजातिको बहुत-सी देशकी है और धर्म क्या वस्तु है ? केवल रातको भोजन न