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________________ क्या कुन्दकुन्द ही 'मूलाचार के कर्ता हैं ? ले०-श्री०५० परमानन्द जैन, शास्त्री । जैन ग्रन्थकारों में प्राचार्य कुन्दकुन्दका जैसे प्रन्थ भी पाहुड-प्रन्थ ही है, जिनमें से कुछ तो 'स्थान बहुत ऊँचा है। आप अपने ममयके ममयपाहुड, पंचत्थिपाहुड जैसे नामोंसे उल्लेखित एक बहुत ही प्रसिद्ध विद्वान हो गए हैं । जैन- भी मिलते हैं। इन ग्रन्थों तथा कुछ भक्तिपाठोंके मिद्धान्ती तथा अध्यात्म-विद्याक विपयमें आपका अतिरिक्त 'बारम-अणुवेक्खा' नामका आपका ज्ञान बहुत बढ़ा चढ़ा था । अापकी उपलब्ध एक ग्रन्थ और भी उपलब्ध है। शेष सब पाहुड मौलिक रचनाएँ ही इम विषयकी ज्वलन्त उदा ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं हैं...उनमें से कुछ के नाम हरण हैं । प्रवचनमार, पंचाम्तिकाय और ममय जरूर मिलते हैं--और यह हमारा दुर्भाग्य तथा मार जैम ग्रन्थ तो ममृचे जैनममाजको अपनी प्रमाद है जो हम उन्हें सुरक्षित नहीं रख सके ! ओर आकृष्ट किए हुए हैं। दिगम्बर-श्वेताम्बर हाँ 'मूलाचार' नामका भी एक ग्रन्थ है, जो दानों ही समाजोंमें उनका समान रूपम आदर और बट्टकराचार्यकृत कहा जाता है । वसुनन्दि आचार्य प्रचार है । अंग्रेजी अनुवादादि के माथ प्रकाशमें न मूलाचारकी टीकामे उस 'वट्टकेराचार्यकृत' लिग्या आने के कारण बाह्य जगतमें भी अब उनकी अच्छी है। ये वट्टकेगचार्य कब हुए ? किस गुरुपरम्परा ग्व्यानि हो चली है । नियममार और भावपाहुड जैसे में हुए ? इनके बनाए हुए दसरं कौन कौन ग्रन्थ है ? ग्रन्थ भी अपना खास महत्व रग्बने है । वास्तव में और इनके नामका अन्यत्र कहीं उल्लेग्य मिलना आपकी मभी कृतियां महत्वपूर्ण है और ममें जैन- है या कि नहीं ? इन सब बातांका कोई पता नहीं। धर्मको व्यक्त करनेवाली है मात्र वमनन्दि आचार्यकी टीका परसे ही यह श्री कुन्दकुन्दाचार्यकै विषयमें यह प्रसिद्ध है नाम प्रचारमें आया हुआ जान पड़ता है। कि उन्होंने चौगमी पाहुइ (प्राभूत ) ग्रन्थोंकी कुछ विद्वानोका खयाल है कि 'मृलचार' ग्रन्थ ग्चना की थी। पाहुड नामसे प्रसिद्ध होनेवाले भी आचार्य कुन्दकुन्दकृत ही होना चाहिए। प्रो. आपके उपलब्ध ग्रन्थोंमें यद्यपि आमतौर पर १ १० एन० उपाध्यायने प्रवचनमारकी अपनी भूमिकादमणपाहुड, २ चारित्त पाहुड. ३ सुत्नपाहुड, बांध- में से कुन्दकुन्दक ग्रन्थोंकी लिस्टमें दिया है. पाहुड, ५ भावपाहुड ६ मोक्वपाहुड, लिंगपाहुड अनेक ग्रन्थ प्रतियोंमें भी वह कुन्दकुन्दकन और ८ सीलपाहुड, ऐसे पाट पाहु डॉका ही नाम लिखा मिलता है । माणिकचनप्रन्थमालामें लिया जाता है परन्तु वास्तवमें समयसार, प्रकाशिन प्रतिक अन्नमें भी उसे निम्न वाक्य पंचाम्निकाय. प्रवचनमार, नियममार, ग्यगणमार द्वारा कुन्कुन्दाचार्य प्रणीन लिया है- "इनिमला
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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