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________________ अनेकान्त [पौष, वीर-निर्वाण सं० २४६५ चारविवृतौ द्वादशोऽध्यायः । कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीन- प्रथम गाथाके अतिरिक्त बारमअणुवेक्वाकी मूलाचाराव्य-विवृतिः । कृतिग्यिं वसुनन्दिनः दृमरी गाथा भी मूलाचारके उक्त अधिकारमें श्रीश्रमणम्य ।" मंगलाचरण गाथाके अनन्तर ही ज्यों की त्यों इन सब बातोंको लेकर बहुत दिनोंस में उपलब्ध होती है । यथाहृदयमें यह जिज्ञासा चल रही थी कि 'मृलाचार' अद्भवमसरणमेगत्त मण्णसंमारलोगलमुचित्तं । ग्रन्थ वाम्नवमें किमका बनाया हुआ है और ग्राममत्रमंवरांगज्जरधम्म बाहिं च चिंतेज्जो ॥॥ उत्सुकता थी कि इम विषयका शीघ्र निर्णय होना -वारसअणुवकावा । । चाहिए । इधर मुख्तार साहब, अधिमाता वीर- अद्ध्वममरणगंगत्तमएणसंसारलीगममुचिनं । सेवा मन्दिरकी सूचना मिली कि कुन्दकुन्दके ग्रन्थों आमवमवर्गगाज्जरधम्म बोधि च चितेज्जी ।। के माथ 'मृलाचारके' साहित्यकी तुलना होनी -मूलाचार, ६०२ चाहिए । तदनुसार मैं तुलनाके कार्यमें प्रवृत्त हुआ। मूलाचारमें यह गाथा ४०३ नम्बर पर भी पाई यापि मुग्नार माहवकी इच्छानुसार तुलनाका जाती है । इमी तरह बारमअणुवेम्वाकी १४, २२, वह पूरा निर्णायक कार्य मुझम नहीं बनमका. फिर २३, ३५. ३६ नम्बरकी गाथाएँ भी मृलाचार में भी मामान्यरूपम कुन्दकुन्दके प्रन्यांके माथ मूला क्रमशः ६६६, ७०१. ५००.०६.०६ नम्बर पर चारकी गाथाओंका मिलान किया गया । इस पाई जाती हैं। परन्तु इनमेस अनुप्रक्षाकी , मिलान परसे गाथाओं की ममानता असमानतादि- नम्बर वाली गाथाकं चतर्थपाद तम्स फलं भुजदे का जो कुछ पता चला है उसे विद्वानों एवं रिमर्चः एवम्को' की जगह मूलाचार में एवं चिहि पयनं' स्कालरोंक जानने के लिए नीचे प्रकट किया जाता है, पाठ दिया हुआ है । वारमअणुवेकावाकी ५७ नम्बर जिससे यह विषय शीघही निर्णीत हो सके:- की गाथाका पूर्वार्ध मूलाचारकी २३७ नम्वरकी प्राचार्य कुन्दकुन्दके बारभअगुवेकम्वा' ग्रन्थकी गाथाके माथ ज्यों का त्यों मिलना है; परन्नु मंगलाचरण गाथा कुछ शब्दपरिवर्तनके माथ उत्तरार्ध नहीं निलता। 'मृलाचार के आठवें बादशानुप्रचा' नामक आचार्य कुन्दकुन्दक नियममार' की गाथाएँ अधिकारी भी मंगलाचरगण रूपमं हो पाई जाती नं०६६, ७० ६६. १००. १०२, १०३, १०४ मूलाहै । यथा चारमें क्रमशः नं० ३३२. ३३३. ४५, ५६, ४८.३६, गामिऊण गव्यमदं झागुनमन्यांवददीह मंसारे। ४२ पर ज्यों की त्यों पाई जाती हैं । १६, १०० दम दम दो दो यतिणे दम दो प्राणुपेहणं वोच्छे ॥ नम्बग्वाली गाथाएँ कुन्दकुन्दके भावपाहडमे ५.५.५८ -वारमअणुवस्वा नम्बर पर और १०० नम्बर वाली गाथा ममयसार मिदं गामसिदृण प झागुनमलाव पदीहसंमारे। में भी२७७ नम्बर पर उपलब्ध होती है। दह दह दो दो य जिणे दमदो अणुपेणं बोल ॥ नियममारकी २, ६२. व ६५ नम्बरकी गाथाएँ मन्नानार. ६९१ मूलाचारमें कुछ पाठभेद नथा परिवर्ननके माथ
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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