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________________ २१४ अनकान्त [पौष, वीर-निर्वाण सं० २४६५ - हैं; किन्तु वह जैनधर्मसे अनभिज्ञ हैं वे प्रयत्न बाला है । जिधर बहुमत है उधरही सत्य समझा करने पर---उनके गाँवोंमें जैन रात्रिपाठशालाएँ जा रहा है। पंजाब और बंगालमें मुस्लिम मिनिस्ट्री खोलने पर-वे आसानीसे जैन बनाए जा सकते है, मुस्लिम बहुमत है तो हिंदुओंके अधिकारोंको हैं। हमारे मन्दिरों और संस्थाओंमें लाखों नौकर कुचला जारहा है; जहाँ काँग्रेसका बहुमत है वहाँ रहते हैं; मगर वह जैन नहीं हैं । जैनोंको छोड़कर उसका बोलबाला है । जिनका अल्ममत है वे संसारके प्रत्येक धार्मिक स्थानमें उसी धर्मका कितनाही चीखें चिल्लाएँ, उनकी सुनवाई नहीं हो अनुयायी रह सकता है; किन्तु जैनोंके यहाँ हो सकती। इसलिए सभी अपनी जाति-संख्या उनकी कई पुश्तें गुज़र जाने पर भी वे अजैन बन बढ़ाने में लगे हुए हैं। समय रहते हमें भी चेत जाना हुए हैं। उनकी कभी जैन बनानेका विचार तक चाहिए | क्या हमने कभी सोचा है कि जिस तरह नहीं किया गया। जल में रहकर मछली प्यासी पड़ी हिन्दु-मुसलमानों या सिक्खों के साम्प्रदायिक संघर्ष होते रहते हैं यदि उसी प्रकार कोई जाति जिन जातियोंके हाथका छत्रा पानी पीना हमें मिटानेको भिड़ बैठी तब उस समय हमारी अधर्म समझा जाता है, उनमें लोग धड़ाधड़ मिलते क्या स्थिति होगी ? वही न ? जो आज यहूदियों जा रहे हैं। फिर जो जैन समाज खान-पान रहन और अन्य अल्पसंख्यक निर्बल जानियोंकी हो रही सहनमें श्रादर्श है, उन है और अनेक आकर्षित है। अतः हमें अन्य लोगोंकी तरह अपनी एक ऐसी उसके पास साधन हैं, माथही जैनधर्म जैसा मुसंगठित संस्था खोलनी चाहिए जो अपने लोगों सन्मार्ग प्रदर्शक धर्म है तब उसमें सम्मलित होने को संरक्षण एवं स्थितिकरण करती हुई दूसरोंको में लोग अपना सौभाग्य क्यों नहीं समझेंगे ? जैनधर्ममें दीक्षित करनेका मातिशय प्रयत्न करे। जमाना बहुत नाजुक होता जा रहा है। सबल ताकि हम पूर्ण उत्साह एवं दृढ़ संकल्पके साथ निबलोंको खाए जा रहे हैं। बहु संग्यक जातियाँ कह सके .. अल्प संख्यक जातियों के अधिकागेको छीनने आज जो हमसे जियादा वो कल कम होंगे। और उन्हें कुचलनेमें लगी हुई हैं। बहुमतका बोल जब कमर बांधके उठेंग हर्मा हम होंगे ॥ ले चुके अँगड़ाइयाँ ऐ गेसुओ वालो उठो। नूर का तड़का हुआ, ऐ शव के मतवालो उठो ।। -"बर्क" देहल्बी।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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