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वर्ष २ किरण ३]
जैन-समाज क्यों मिट रहा है ?
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सच है
स्थगित करदेनाही बुद्धिमत्ता थी। उस समय राज्यनशा पिलाके गिराना तो सबको पाता है। धर्म-ब्राह्मणधर्म-जनताका धर्म बन गया । मज़ा तो जय है कि गिरतोंको थामले साक़ी ॥ उसकी संस्कृति श्रादिका प्रभाव जैनधर्म पर पड़ना
-कबाल अवश्यम्भावी था। बहुसंख्यक, बलशाली और गिरते हुओंको टोकर मार देना, मुसीवतजदोंको
राज्यसत्ता वाली जातियों के आचार-विचारकी छाप और चर्का लगा देना, बाऐबोंको ऐव लगादेना, भूले
अन्य जातियों पर अवश्य पड़ती है। अतः जैन
समाजमें भी धीरे-धीरे धार्मिक-संकीर्णता एवं हुओंको गुमराह कर देना, नशा पिलाके गिरादेना, आसान है और यह कार्य तो प्रायः सभी कर सकते
अनुदारुताके कुसंस्कार घर कर गए। उसनेभी हैं; किन्तु पनित होते हुए-गिरतेहुए-को सम्हाल
दीक्षा-प्रणालीका परित्याग करके जातिवाहिष्कार
जैसे घातक अवगुणको अपनालिया ! जो सिंह लेना, बिगड़ते हुएको बनादेना, धर्म-विमुखको धर्मारुढ़ करना, बिग्लोका ही काम है। और यही
मजबुग्न भेड़ोंमें मिला था, यह सचमुच अपनेको विरलेपनका कार्य जैनधर्म करता रहा है । तभीती
भेड़ समझ बैठा !! वह पतित-पावन और अशरण शरण कहलाना वह समयही ऐसा था उस समय ऐसाही रहा है।
करना चाहिए था; किन्तु अब वह ममय नहीं है। ___ जब जैन धर्म को राज-पाश्रय नहीं रहा और अब धर्म के प्रमाग्में किसी प्रकार का खतरा नहीं इसके अनुयायियोंको चुन-चुन कर सताया गया। है। धार्मिक पक्षपान और मज़हबी दीवानगीका उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया, तब नव-दीक्षित समय बहगया। अब हरएक मनुष्य सत्यको खोज करनेकी प्रणालीको इमलिए स्थगित कर दिया गया, में है। बड़ी सरलनास जैनधर्मका प्रसार किया जा ताकि राजधर्म- पापित जातियाँ अधिक क्षभिन न सकता है । इमस अच्छा अनुकूल समय फिर नहीं हान पाएँ और जैनधर्मानुयायियों से शूद्रों तथा प्राप्त हो सकता। जितने भी समाजसे वहिष्कृत म्नन्छों जैसा व्यवहार न करने लगें-नास्तिक समझे जा रहे हैं, उन्हें गले लगाकर पूजा-प्रक्षाल
और अनार्य जैसे शब्दांस तो वे पहले ही अलंकृत का अधिकार देना चाहिए । और नव-दीक्षाका किए जाते थे । अतः पतित और निम्न श्रेणीके पुराना धार्मिक ग्विाज पुनः जारी कर देना चाहिए । लिए तो दरकिनार जैनेतर उच्च वर्ग के लिए भी जैन- वर्तमानमें सराक, कलार आदि कई प्राचीन धर्मका द्वार बन्द कर दिया गया ! द्वार बन्द न जातियाँ लाग्योंकी संख्या में हैं। जो पहले जैन थीं करते तो और करते भी क्या ? जनोंको ही बलान और अब मर्दुम शुमारी में जैन नहीं लिखी जाती जैनधर्म छोड़ने के लिए जब मजबूर किया जारहा हो, हैं; उन्हें फिरसे जैनधर्ममें दीक्षित करना चाहिए। शानोंको जलाया जा रहा हो, मन्दिरीको विध्वंस इनके अलावा महावीरके भक्त ऐसे लाखों गुजर किया जा रहा हो । तब नव-दीक्षा-प्रणालोका मीने आदि हैं जो महवीर के नामपर जान देसकते