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________________ अनेकान्त [पोप, वीर-निर्वाण सं० २४६५ ढंगसे दृमरी को अपनाकर अपनी संख्या बढ़ानी किया है और मिटानेका कलंक उनके सर मढ़ा जारही हैं, और एक हमार्ग जाति है जो बढ़ना तो जायगा, जिन्होंने लाखों भाइयोंको जाति-च्युत दूर निरन्तर घटती जारही है। भारतके मान करके धर्म-विमुख कर दिया है और रोजाना किसी करोड़ अकृतोंकी जब हिन्दु-धर्म छोड़ देनेकी न किसी भाईको समाजसे बाहर निकाल रहे हैं ! अफवाह उड़ी तो, मिम्रसं मुसलमान, अमेरिकासे हायर अनोखे दण्ड-विधान !!: तनिक किसी ईमाई, जापानसे बौद्ध और पंजावस सिग्य प्रति- स जाने या अनजानेमें भूल हुई नहीं कि वह निधि अछूतांक पाम पहुँच और सबने अपने समाजसे प्रथक ! मन्दिरमें दर्शन करते हुए ऊपरसं अपने धर्मों में उन्हें दीक्षित करनेका प्रयत्न किया, कवृतरका अण्डा गिरा नहीं कि उपस्थित सब किन्तु जैनियोंकी ओरसे प्रतिनिधि पहुँचना तो दर्शनार्थी जातिसे खारिज ! गाढ़ीवानकी असावदरकिनार, ऐसी श्राशा रग्बना भी व्यर्थ साबित धानीसे पहिये के नीचे कुत्ता दबकर मर गया और हुश्रा। गाड़ी में बैठी हुई मारी मवारियाँ जातिस च्युत ! लेखानुसार जैन-समाजस २२ जैनी प्रतिदिन क्रोधावेशमें श्री कुएं में गिरी और उसके कुटुम्बी घटते जारहे हैं और हम उफ़ तक भी नहीं करते- जातिसे खारिज ! किसी पुरुपने किसी विधवा चपनाप माम्यभावसे देख रहे हैं। एक भी मह- या मधवा श्रीपर दोपारोप किया नहीं कि उस मी धर्माकं घटने पर जहाँ हमारा कलेजा तड़प उठना सहित सारे कुटुम्बी समाजसे बाहर !! चाहिये था-जब तक उसकी पूर्ति न करलें तब ___ उक्त घटनाएँ कपोल्कल्पित नहीं, बुन्देलखण्ड में. तक चैन नहीं लेना चाहिय था-वहां हम निश्चेष्ट मध्यप्रदेशमें, और राजपूनानेमें. ऐसे बदनसीव बैठे हुए हैं. ! देवियोंके अपहरण और पुरुपोंके रोजानाही जातिस निकाले जाते हैं। कारज या धर्म-विमुग्य होनेके समाचार नित्य ही सुनते हैं नुक्ता न करने पर अथवा पंचोंस द्वेष होजाने पर और मर धुनकर रह जाते हैं ! मच बात तो यह भी समाजसे प्रथक होना पड़ता है। स्वयं लेखक है कि ये मब काण्ड अब इतनी अधिक संख्या ने कितनीही ऐसी कुल-बधुश्रांकी श्रात्म-कथाएँ मुनी होने लगे हैं कि उनमें हमें कोई नवीनता ही दिखाई हैं जो समाजके अत्याचारी नियमोंके कारण दूसरों के नहीं देती-हमारी प्राग्वे और कान इन सब बातों ___ घरों में बैठी हुई आहे भर रही हैं । जानि-बहिष्कार के देखने सुननेके अभ्यस्त हो गए हैं। के भयने मनुष्योंको नारकी बना दिया है। इसी जैन-समाजकी इस घटतीका जिम्मेवार कौन भयके कारण भ्रूण हत्याएँ, बाल हत्याएं आत्महै ! जैनसमाजके मिटानेका यह कलङ्क किसके सिर मढ़ा जायगा ? वास्तवमें जैन-समाजकी घटती हत्याएँ जैसे अधर्म कृत्य होते हैं। तथा नियां के जिम्मेवार वे हैं, जिन्होंने समाजकी उत्पादन और पुरुष विधर्मियोंके आश्रय तकमें जानेको शक्तिको क्षीण करके उसका उत्पत्ति स्रोत बन्द मजबूर होते हैं।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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