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वर्ष २ किरण १]
श्रात्मा का बोध इतने में वर्द्धमान की समाधि टूटी। उन्होंने चंडकोसिया अब क्या करे ? क्या मर जाए ? देखा सामने एक सर्प क्रोधसे लाल अपनी उसने कहा, "भगवान् मुझे, दण्ड दीजिये। मैं विवशता पर खीजता हुआ खड़ा है।
क्षमा करने योग्य नहीं हूं।" उन्होंने उसे संकेत कर कहा.-क्रोधित क्यों और वह वर्द्धमानके चरनोंमें सिर डालकर होते हो, ओ सर्पदेव ? श्रानो, लो काट लो न ? .
ह र रोने लगा। चंडकोसिया चुप ! वह क्या कहे ? क्या
वर्द्धमानने उसे उठाया। बोले, “बन्धु, यह यह उसकी पराजय नहीं है ? उसने एक निरपराधी
दीनता कैसी ? उठो सीखो कि भविष्यमें कभी व्यक्ति को कष्ट पहुँचाने का प्रयत्न किया और वही
किसीको कष्ट न दोगे !" व्यक्ति शान्तिपूर्वक उसके साथ भाई-चारे का चंडकोसिया ज्यों का त्यों पड़ा रहा। व्यवहार कर रहा है ! जरा भी रोप उसे नहीं है। वर्द्धमानने कहा, "उठो, उठो, अपने आत्म
स्वरूपको पहचानो, मनमें दया रक्खो और मनसे वर्द्धमानने फिर कहा--ओ, नागराज ! किस
वचनस तथा कर्मसे जहाँतक होसके कभी किसी द्विविधा में हो ? लो, मैं तुम्हारे सामने हूँ। बचने
को दुख मत पहुंचाओ”। का प्रयत्न भी नहीं कर रहा हूँ। जहाँ चाहो काट चंडकोसिया को जातिस्मरण हो आया उसने सकते हो।
वर्द्धमानकी बाणीसे तृप्त होकर · कहा,
"भगवन ....." चंडकासिया धरती फट जाय तो उसमें समा
और सिर झुका-मुकाकर उसने अनेकों बार जाय । वह आज कितना क्षुद्र है? उसकी शक्ति
वर्द्धमानके सदुपदेशके प्रति कृतज्ञता प्रगट की, उस बली, वञऋषभ नाराच संहननके धारकके जैसे प्रदर्शित करना चाहता हो कि हे भगवान्, सामने कितनी सीमित है ?
तुमने मुझे आत्माका बोध कराया। मैं तो मूर्ख था,
निरा अज्ञानी ! वर्द्धमान ने कुछ ठहर कर कहा-भैया तुम
वर्द्धमानने अशीर्वाद दिया और वह अपनी क्या सोच रहे हो? मैं तैयार हूँ। तुम मुँह मार सकते विवरमें चला गया। हो । एक नहीं, जितने चाहो।
___ उसदिनसे फिर कभी किसीने चंडकोसिया ___ चंडकोसिया ने लज्जा से शिर झुका लिया। को हिंसक नहीं पाया । विवरसे निकलता था और बोला, "भगवन, मुझे क्षमा करो। मैं अपराधी मनुष्योंके साथ भाई-जैसा व्यवहार करता था। .'
थोड़े ही दिनोंमें उस उजड़े स्थानपर फिर __ वर्द्धमानने बीचमें ही रोककर कहा, "हैं-हैं,
तपस्वी श्रा बसे और तपस्या करने लगे। ऐसा न कहो, नागदेव ! तुम शक्तिमान हो ! तुमने
* इस कहानी की मूल कथावस्तु श्वेताम्बर-प्रन्याश्रित
है; परन्तु उसे भी यहाँ कुछ परिवर्तित करके अगणित व्यक्तियोंको अपने तेज-बलसे भस्म
रखा गया है। करदिया है।"
--सम्पादक