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________________ अनुसन्धान RS आर्य और म्लेच्छ [सम्पादकीय] भीगृद्धपिच्छाचार्य उमास्वातिने, अपने चाहिए कि उसमें भी 'आर्य' और 'म्लेच्छ' का तत्त्वार्थाधिगमसूत्र प्रन्थमें,सब मनुष्यों कोई स्पष्ट लक्षण दिया है या कि नहीं । देखने से को दो भागों में बाँटा है-एक 'आर्य' और दूसग मालूम होता है कि दोनोंकी पूरी और ठीक पहचान ‘म्लेच्छ'; जैसा कि उनके निम्न दो मृत्रोंमे प्रकट बतलानेवाला वैसा कोई लक्षण उसमें भी नहीं है, है: मात्र भेदपरक कुछ स्वरूप जरूर दिया हुआ है और "प्राङ्मानुषोनगन्मनुष्याः।" वह सब इस प्रकार है:"आर्या म्लेच्छाश्च*" अ०३।। "द्विविधा मनुष्या भवन्ति । आर्या मिलशश्च । तत्रार्या परन्तु 'आर्य' किसे कहते हैं और म्लेच्छ' पविधाः । क्षेत्रार्याः जात्यार्याः कुलार्याः कार्याः शिल्पार्याः भाषार्या इति । तत्र क्षेत्रार्या पञ्चदशसु कर्मकिस ?-दोनोंका पृथक पृथक क्या लक्षण है ? ऐसा भूमिषु जाताः । तद्यथा। भरतेवर्धषड्विंशतिषु जनपदेषु कुछ भी नहीं बतलाया। मूलसूत्र इम विषयमें मौन हैं । हाँ, श्वेताम्बरोंके यहाँ तत्त्वार्थसूत्र पर एक जाताः शेषेषु च चक्रवर्तिविजयेषु । जात्यार्या इक्ष्वा कवो विदेहा हरयोऽम्बष्ठाः शाताः कुरवो वुनाला भाप्य है, जिसे स्वोपसभाष्य कहा जाता हैअर्थात स्वयं उमास्वातिकृत बतलाया जाता है। उग्रा भोगा राजन्या इत्येवमादयः । कुलार्याः कुलकरा चक्रवर्तिनो बलदेवा वासुदेवा ये चान्ये प्रातृतीयादापयद्यपि उस भाष्यका स्वोपज्ञभाष्य होना अभी बहुत कुछ विवादापन्न है, फिर भी यदि थोड़ी देरके लिए श्चमादासप्तमाता कुलकरेभ्यो वा विशुद्धान्वयप्रकृतयः । विषयको आगे सरकानेके वाम्ते-यह मान लिया कार्या यजनयाजनाध्यपनाध्यापनप्रयोगकपिलिपिजाय कि वह उमास्वाति-कृत ही है, तब देखना वाणिज्ययोनिपोषणवत्तयः । शिल्पास्तिन्तुबायकुलाल नपिततुन्नवायदेवटादयोऽल्पसावद्या आर्हिताश्वताम्बरोंके यहाँ ‘म्लेच्छाश्च के स्थान पर जीवाः। भाषा- नाम ये शिष्टभाषानियतवर्ण लोकम्लिशश्च' पाठ भी उपलब्ध होता है, जिससे कोई __ रूढस्पष्टशन्द पद्धविधानामप्यार्याणां संव्यवहार अर्थभेद नहीं होता। भाषन्ते।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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