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________________ ॐ अहम् ६ .2 ITalk - नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ - वर्ष २ सम्पादन-स्थान-वीरसेवामन्दिर (समन्तभदाश्रम), सरसावा जि.सहारनपुर प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस पो० ब०नं०४८ न्य देहली पौषशुक्ल, वीरनिर्वाण सं०२४६५, विक्रम सं० १६६५ किरण ३ समन्तभद्र बन्दम तीर्थ सर्वपदार्थ-नत्व-विषय-स्याद्वाद-पुण्योदधेः भव्यानामकलक-भावकृतये प्रामावि काले कलौ । येनाचार्यसमन्तभद्र-यतिना तस्मै नमः संततं (कृत्वा विप्रियते म्तवो भगवतां देवांगमस्तस्कृतिः।।) -देवागमभाष्ये, भट्टाकलंकदेवः । जिन्होंने सम्पूर्ण-पदार्थ-तत्वोंको अपना विषय करनेवाले म्याद्वादरूपी पुण्योदधि-तीर्थको, इस कलिकालमें. भव्यजीवोंके आन्तरिक मलको दूर करनेके लिए प्राभावित किया है उसके प्रभावको सर्वत्र व्याप्त किया है-उन प्राचार्य समन्तभद्र यतिको-सन्मार्गमें यत्नशील मुनिराजको-बारबार नमस्कार । भव्यक-लोकनयनं परिपालयन्तं म्याद्वाद-वन्मे परिणीमि समन्तभद्रम् ।। -अष्टशत्यां, भट्टाकलंकदेवः ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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