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'अनेकान्त' पर लोकमत
'अनकान्त' के द्वितीय वर्षकी प्रथम किग्गाको माम्प्रदायिक कलहके वातावरणमे पत्रको अलग पाकर जिन जैन-अजैन विद्वानों, प्रतिष्ठित पुरुपों, रखनेका जो प्रारम्भ ही शुभ संकल्प किया है वह तथा अन्य मजनों ने उसका हृदयसे वागत किया शत-शत बार प्रशंसनीय है । पत्रकी नीति रीति विशाल है और उसके विपयमें अपनी शुभ सम्मनियाँ है. उदार है. फलतः वह जैन-संमार के मभी विभागों नथा ऊँची भावनायें बीरगंबामन्दिर' को भेजने को एक ममान लाभकारी सिद्ध होगा। की कृपा करके संचालकोंके उन्माहको बढ़ाया है उनमें से कुछ मजनों के विचार तथा हृदयादगार
__श्रीयुत जुगलकिशोर जी जैन-संमार के माने हुए
निष्पन्न विद्वान हैं। पत्रको प्रतिष्ठा के लिए सम्पादक पाठकोंक अवलोकनार्थ नीचं प्रकट किये जाने
म्थानमं एकमात्र आपका नाम ही सर्वतः अलं है। हम
आशा करते हैं-मुयाग्य मम्पादक की छत्रछायाम (१) श्रीमान मुनि श्री कल्याणविजयजी, 'अनेकान्न' अपने निश्चित् ममयपर उदित होता रहेगा
और अपना भविष्य अधिक से अधिक ममुज्वल बना ..'अनेकान्त' की मजधज वही है जो पहले थी, खशीकी बात इतनाही है कि अब इसे अच्छा संरक्षण ।
एगा । यथावकाश हमभी अपनी सेवा कभी-कभी 'अने - मिन्न गया है । आशाही नहीं पूर्ण विश्वास है कि अब कान्त' को अर्पण करने का प्रयत्न करेंगे।" यह माहित्य-क्षेत्रम प्रकाश डालन के माथ माथ मामा
(३) श्रीमान पं० कलाशचन्द्रजी जैनशास्त्री प्रधाजिक में भी अपनी किरण फेकना रहेगा. ।
नाध्यापक स्या० वा०वि० बनारसआमार दीग्वत हैं । नथाम्न ।' (२) श्रीमान शनावधानी मुनि श्री रतनचन्द्र जी
"पाट वर्षके मुदीर्घ अन्नगनकं बाद अपने पूर्व व मुनि श्रीअमरचन्द्रजी
पर्गिचत बन्धुको उमी मुन्दर कलेवरम देखकर किसे
हप न होगा। मुग्वपृष्ठ पर वही अनेकान्तमूर्य अपनी दीर्घानिदीघ निशाका नके बाद अनेकान्त मयका विविध रश्मियोंकि माथ विराजमान है और अन्तरंग उदय बड़ी शान के माथ हुा । वपकी प्रथम किरगा जो
पृटीमें अनुसन्धान, नन्यचर्चा, अतीतम्मृति, सम्यकपथ शान प्रकाश लेकर आई है वह महृदय मजनोंके हृदय
आदि जानकी विविध धाराय अनेकान्तक प्रकाश में मन्दिरको खब जगमगा देनवाला है ।
झिलमिल झिलमिल कर रही हैं। तभीती देग्यनवालों वर्तमान जागृति के लिए जो भी विषय आवश्यक की आंग्य चाँधिया जानी है । अम्नु, लेग्यों का संकलन हैं. उन मवको पत्रमें स्थान दिया है और बड़ी ख़बीसे मुन्दर है और उनकी विविध विषयता गंचक । इममे दिया है । कुछ लेग्व नो बही गवपणापूर्ण है और वे मभी प्रकार के पाठकोंका अनुरञ्जन हो मकंगा। योनी पत्रका प्रतिष्ठा को काफी ऊँच धगतलम ले जाते हैं। मभी लेग्ब मुपाच्य हैं, किन्तु उनमें श्री कुन्दकुन्द और