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Regd. No. L.4328 अतिवृषभके पौवापर्यका आपका लेख ऐतिहासिकोके अशुद्धियाँ अधिक है, अतः इधर ध्यान देने की भावजमने कुछ नये विचार रण्वता है और उससे कुन्दकुन्द श्यकता है। का ममय निर्णन करनेमें कुछ नये प्रमाण प्रकाशम (४) श्रीमान पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायशास्त्री, आये हैं। बाबू सूरजभानजीका लेवनी लेग्बन कला की दृष्टिसे बहुत ही उत्कृष्ठ है। इतने गम्भीर विषयको
"पत्र आशानुरूप रहा । इसकी गति-नी.नम मुझे इतनी मरलना और रोचकतासे प्रतिपादन करना मूग्ज- मी कुछ निम्वन का उत्माह हुआ है। छपाई नथा मानजो मरीख मिदहस्त लेग्यकाका ही काम है।
प्रफ. मशीधन मन्नापजनक नहीं है। पत्र हर नहके
पाठकॉक योग्य यथेष्ठ सामग्रीसे परिपुण है।" ___ आपने मुझम लेग्व मांगा था. परन्तु कोई विषय न मूझ पड़नेस मै अमी आपस क्षमा मांगकर छुट्टी ले (५) श्रीमान पं० शोभाचन्द्रजी न्यायतीर्थ, लेनेका विचार करता था, परन्तु हम अङ्कने, खामकर हेडमास्टर जैन गुरुकुल, व्यावर---- ग सरजमानजीक लेम्वन-मुझे लिम्वन को मामग्री
अनेकान्न की प्रथम किरण ग्राम हई। अने देदी है। और अब मैं आपके नाम उऋण होनी
कान्त चक्रपर नजर पढ़त हा हादिक उल्लामकी अनु चिना है।
मान हुई । अन्दरकी मामा ना ठाम. महत्वपूण आग अन्तम भापके सुदीर्थ जीवनी कामना करना माननीय हानीही थी। आपके मम्पादकत्यम जमी हा 'अनकान्त' के संचालक श्री प्रकाशकको हार्दिक आशा थी. 'श्रनकान्न' उम पूर्ण करना है । ‘गुन न । धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता जिनकी उदारता हगना गुनगाहक राहगना है। टंग्व समाज अपना और प्रयत्न शीलता में 'अनकान्त' क पुनः दर्शन कर गुणग्राहकनाका किनना परिचय देना है।" मकनका मौभाग्य प्राप्त हुआ। हम अङ्कम पर मबन्धी
-क्रमण
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सचना
सम्पादकजीके १ नवम्बरसे बीमार पड़ जाने के कारण इस किरणके लेखोंका उनके द्वारा सम्पादन नहीं होसका । इतनीही प्रसन्नताकी बात है कि वे शुरूके एक फार्मका मैटर २१ तारीखको भेज सके हैं। अब उनकी तबियत सुधर रही है और पूर्ण आशा है कि '' तीसरी किरणका सम्पादन उन्हीं के द्वारा होगा।
-व्यवस्थापक