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अगहन, वीर निर्वाण सं० २४६५]
साकिया
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अरे.........वह रहा 'गोपिया' के द्वार पर, चिट्री डाकिया मीना के द्वार के आगे से निकला। दे रहा है !....."वह आया ......!'-मीना ने उफ ! रूपा की जैसे सारी कक्षाएं भागी जा खुशी में डूब कर कहा।
रही हों। 'उधर ही आ रहा है क्या ?'-रूपा के डाकिया की उड़ती हुई, सरसरी नजर ने धड़कते हुये दिल ने पूछा !
देखा-'मीना की मां के जैसे प्राण निकल रहे हैं।' ___हाँ..." हाँ .... !-मां !!-मीना बोला। उसने अपनी गतिको धीमा किया, सुना-ऐं! दोनों प्रसन्न थे!
आज भी नहीं पाया, भरे कल कहाँसे खायेंगे ?' __'यह लो, तुम्हारा मनिआर्डर है ! रूपा ने
उसके हृदय में एक दर्द उठा, वह सोचने लगा सुना तो गद्गद् हो गई !
'कितनी करुणाजनक परिस्थिति है-मोह ! मनिदेखो, निकला न उसका अनुमान सही ?- आर्डर पर ही इस परिवार का जीवन निर्भर है ! क्या आज उसका मनिआर्डर न पाता, यह हो खाने के लिए चाहिए ही, और मनिआर्डर आही सकता था ?-मीना की बांह में उसने नही रहा ! पाँच मात दिन गए राज़ बेचारों का चिकोटी काटी, जैसे कहा 'पागे, बढ़ !'
कोमल-मन टूट जाता है ! सुबह-ही-सुवह !" और __ मीना लपक कर आगे बढ़ा, डाकिया बराबर
उस पाप का पातक लगता है-मुझे ! अरे ! मैं ही के-घर के द्वार पर था !
तो नित्य उनकी आशाप्रासादों को ढा देता हूँ ! 'लामो, माँ का अंगूठो लगवाऊँ ?'-मीना
उफ ! बेचारे कैसे डरते दिल से देखते हैं, पूछते ने आँखें डाकिया की ओर लगा दी!
हैं। चाहते हैं कि-'हाँ, है तुम्हारा मनिबार्डर ।'नहीं, तुम्हारा नहीं, इसका है!'-डाकिया
मैं कहूँ ! मगर मैं .......? कहता हूँ-कहना पड़ता ने 'केदार' की ओर संकेत किया!
है 'नहीं है।'.."अहः ! यह 'नहीं है !' कैसा तलमीना मन्त्र! 'अरे ! उसके दादा का मनिडर नहीं, वार-सा लगता है-उन्हें ! लेकिन..." बात मेरे माया..?'-अब.......?" उसकी सूखी-आँखों हाथ की भी तो नहीं, मजबूर हूँ।' में नमी आई ! रुंधे- कण्ठ सं बोला
और वह इन्हीं विचारों में उलझा हुमा, भागे हमारा मनिपाडेर .....!"
बढ़ जाता है।
xxx 'नहीं है-बेटा! होता तो देता न ..... ? डाकिया के स्वर में दर्द था, सहानुभूति थी। रात को..........! मीना लौटा, निराशाका असह्य-भारलिए हुए। 'जा रही हूँ, जा रही हूँ--मैं ! सुनता है, रे या ! माँ आज भी नहीं पाया ।'
मीना! बच्चों को संभाल "हो" हो... दादा रूपा दहलीज का एक किवाड़खोले, सब देख भावें. ... जब आवें ... ज .... ब.क ...ह सुन रही थी। पर निश्चय नहीं कर पा रही थी ... ना कि कि छन्नों की मां... तम्हारा ... मनि. कि बात क्या है ? मीना की बात सुनी तो धम्म आर्डर ... मनि । ... ... ... र .... से जमीन पर गिर पड़ी।
डाकिया ने ... हे... भगवान् ... अ " ! __'ऐं ...!...ऐं ... आज भी नहीं पाया, छोटा-सा बच्चा-मीना, मां की अनर्गल-बातें अरे ! कल कहाँ से खायेंगे?'
सुनता रहा, पर समझा कुछ नहीं।" कि वह