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वर्ष २ किरण २]
जैन-समाज क्यों मिट रहा है ?
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करके, धर्माधिकार छीनकर, धर्म-विमुख करके और कुमार्गरतों मनुष्योंकी जैनप्रन्थों में ऐसी अनेक अपनेको मिथ्यादृिष्टि बना रहे हैं और क्यों धर्ममें कथायें लिखी पड़ी हैं जिन्हें जैन धर्मको शरणमें विघ्न-स्वरूप होकर अन्तराय कर्म बान्ध रहे हैं ! प्रानेसे सन्मार्ग और महान पद प्राप्त हुआ है। जबकि जैन-शास्त्रों में स्पष्ट कथन है कि:- उदाहरण म्वरूप यहाँ ६० परमेष्ट्रीदासजी न्याय
- तीर्थकी “जैनधर्मकी उदारता" नामकी पुस्तकसे म्वापि देवोऽपिदेवः स्वा जायते धर्म किल्विषान्
र कुछ उद्धरण दिये जाते हैं :-- धर्मके प्रभावसे---धर्म सेवनसे-कुत्ता भी
(१) "अनंगसेना नामको वेश्याने वेश्या-वृत्ति देव हो सकता है, अधर्मके कारण देव भी कुत्ता।
छोड़कर जैन दीक्षा ग्रहणकी और म्वर्ग गई । (२) हो सकता है । चाण्डाल और हिंसक पशुओंका
यशोधर मुनिने मछली ग्वाने वाले मृगसेन धीवरभी सुधार हुआ है, वहभी निर्मल भावनाओं और
को व्रत ग्रहण कराये जिसके प्रभावसे वह मरकर धर्म-प्रेमके कारण सद्गतियोंको प्राप्त हुए हैं।
श्रेष कुल में उत्पन्न हुआ। (३) ज्येष्ठ आर्यिकाने जैनधर्म तो कहलाता ही पतित-पावन है। जिसके
एक मुनिसे शीलभ्रष्ट होने पर पुत्र-प्रसव किया, णमोकार मंत्र पढ़नेसे सब पापोंका नाश होमकना
फिर भी वह प्रायश्चित द्वारा शुद्ध होकर तप करके है, गन्धोदक लगाने मात्रसे अपवित्रस अपवित्र
वर्ग गई। (४) राजा मधु अपने माण्डलिक व्यक्ति पवित्र हो सकता है और जिनके यहाँ
राजाकी स्त्रीको अपने यहाँ बलात रखकर विषय हजारों कथायें पतितोंके सन्मार्गपर पानेकी
भांग करता रहा, फिरभी वह दोनों मुनि-दान देने बिखरी पड़ी हैं । जिनके धर्मग्रन्थों में चींटीसे लेकर
थे और अन्तमें दोनों ही दीक्षा लेकर स्वर्ग गये। मनुष्य तककी आत्माको मोक्षका अधिकारी कहकर
(५) शिवभूति ब्राह्मणकी पुत्री देववनोके साथ समानताका विशाल परिचय दिया है। जो जीव
शम्भूने व्यभिचार किया, बादमें वह भ्रष्ट देववती नर्क में हैं, किन्तु भविष्यमं मोक्ष गामी होंगे,
विरक्त होकर दीक्षा लेकर स्वर्ग गई। (६) वेश्या उनकी प्रतिदिन जैनी पूजा करते हैं। कब किस
लम्पटी अंजनचार उसी भवस मद्र्गातको प्राप्त मनुष्यका विकास और उत्थान होने वाला है
हुआ। (७) मॉमभक्षी भृगध्वज और मनुष्यभक्षी यह कहा नहीं जा सकता । तब हम बलानधर्म
शिवदास भी मुनि होकर महान पदको प्राप्त हुए । विमुग्व रखकर उसके विकासको रोककर कितना
(८) अग्निभून मुनिने चाण्डालकी अन्धी लड़की. अधर्म संचय कर रहे हैं ?
को श्राविकाके व्रत ग्रहण कराये । वही तीसरे भवअशरण-शरण, पतितपावन जैन-धर्ममें भूल- में सुकुमाल हुई थी। (६) पूर्णभद्र और मानभद्र भटके पतितों, उच्च और नीच सभीक लिय द्वार दो वैश्य-पुत्रोंने एक चाण्डालको श्रावककं ब्रत खुला हुआ है। मनुष्य ही नहीं-हाथी, सिंह, ग्रहण कराये, जिसके प्रभावसे वह मरकर १६ शुगाल, शूकर, बन्दर, न्योल जैसे जीव जन्तुओं वगमें ऋद्धिधारी देव हुअा। (१०) म्लछ कन्या का भी जैन-धर्मोपदेशमं उद्धार हुआ है। पनिनों जगम भगवान नेमिनाथ के चाचा मुदवने विवाह