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अधिकार! (श्री. भगवत्स्व रूप जैन 'भगवत्' )
विकसित हों अभिलाषाएँ भी
और अलौकिक-सुखप्रद-ज्ञान ! छेड़-छेड़ ! बस, मेरे गायक
वही सुरीली मोहक तान !!
जल जाए प्राणोंकी ममता. मिट जाए जगका अनुराग! श्रो गायक! गा ऐसा गायन. धधक उठे जो ऐसी श्राग !!
[२] कम्पित मन दृढ़ताको पाएजाए सुप्त हृदय भी जाग ! उस स्वरागमें लय हो, करदूँमैं अपने प्राणोंका त्याग !!
[३] मर जाए कायरता मनकीनाहरता पाए सन्मान ! मानवता उत्सुक-मन होकरनिर्मित करे भविष्य महान !!
क्षम रहे, या प्रलय मचे, याविश्व कर उठे हाहाकार ! पर स्वतन्त्र बन जानेका हो
मनमें मेरे भव्य-विचार !"
वाणी, प्राकृति, और क्रिया सेहो बस, प्रगट यही उद्गार ! नहीं चाहिए मुझे परायामिल जाए मेरा अधिकार !!
प्रतीक्षा!
[श्री.-कल्याणकुमार जैन “शशि"]
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मैं हूँ , मेरी भावुकता है,
उमड़ी पड़ती है प्रसन्नतापुप्पोंकी डलिया अम्लानः
रोम-रोममें चारों ओर; इन्हें जुटाए हुए प्रतीक्षा
श्रद्धा नचती है मयूर बन, में बैठा हूँ, अन्तर्दान।
हो-होकर आनन्द-विभोर। इसकी भी चिंतान मुझे हैमुरझा जाएँगे ये फूल,
या यह संध्याकी सुहाग
___ नाली हो जायेगी उन्मूल (४) मैं तो उस धुंधले प्रकाशमें
पर भय है, यह मनोनीतही बैठा-बैठा चुपचाप,
इच्छा जिस समय फलेगी, खोज रहा हूँ एकाकी हो
पद पर फूल चढ़ानेकी भीकर, तेरे चरणोंकी चाप।
क्या सुधि मुझे रहेगी?