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नाम
७ श्रीपाल चरित्र ( प्राकृत)
८
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11
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17
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अनेकान्त
कर्त्ता
नरदेव वानरसेन कृत नेमिदत्त ब्रह्मचारी सं० १५८५
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मल्लिभूषण भट्टारक
कवि
विद्यानंदि
[मार्गशिर वीर- निर्वाण सं० २४६५
उल्लेख
दि० जे० प्रन्थकर्त्ता, प्र० १४
पृ०
१४
ह
१०
११
१२
१३
१४
वचनिका
४३
१५ श्रीपालरास (हिन्दी) ब्रह्म रायमलम ( भूलसिंह के पुत्र रणथंभोर निवासी) सं० १६३० (उ० हस्त लि० हि ह० पु० का विवरण भा० १ ० १७१) धूकवि कृत रचनाकाल १५ वीं शताब्दी मे० प० स० भ० बम्बई
11
शुभचन्द्र मलकीर्ति भट्टारक
दौलतराम काशलीवाल (बसवानिवासी)
13
,
12
"
प्र० २०
पृ० २३
पृ० २६
२८
पृ०
पृ० ३०
१६ श्रीपाल चरित्र (अपभ्रंश)
इनमें नं० ८-१३ की प्रति कारंजा ज्ञानमन्दिर में और आरा-सिद्धान्त भवनमें भी है अब शेष ग्रन्थ कहाँ कहाँ पर हैं ? खोजकर रचनाकालादिका पता लगाना आवश्यक है। उपयुक्त सूची में नेमिदत्त और मल्लिभूषण के २ भिन्न व सकलकीर्ति एवं ब्रह्मजिनदास के २ भिन्न भिन्न चरित्र लिखे हैं वे संभव है. ४ के स्थान पर दो ही चरित्र हों । क्योंकि नेमिदत्त मल्लिभूषण के एवं जिनदास सकलकीर्तिके शिष्य थे संभव है सूची कर्त्ता कर्त्ताका नाम निकालने में गलती की हो। आशा है दि० विद्वान इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालेंगे ।
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'योग्य पुरुषोंकी मित्रता दिव्यग्रन्थोंके स्वाध्यायके समान है; जितनी ही उनके साथ तुम्हारी घनिष्टता होती जायगी उतनी ही अधिक खूबियाँ तुम्हें उनके अन्दर दिखायी पड़ने लगेंगी ।'
'बुद्धि समस्त अचानक आक्रमणोंको रोकने बाला कवच है । वह ऐसा दुर्ग है जिसे दुश्मन भी घेर कर नहीं जीत सकते ।' — तिरुवल्लुवर