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________________ १६४ नाम ७ श्रीपाल चरित्र ( प्राकृत) ८ 77 "" 11 99 17 99 अनेकान्त कर्त्ता नरदेव वानरसेन कृत नेमिदत्त ब्रह्मचारी सं० १५८५ " मल्लिभूषण भट्टारक कवि विद्यानंदि [मार्गशिर वीर- निर्वाण सं० २४६५ उल्लेख दि० जे० प्रन्थकर्त्ता, प्र० १४ पृ० १४ ह १० ११ १२ १३ १४ वचनिका ४३ १५ श्रीपालरास (हिन्दी) ब्रह्म रायमलम ( भूलसिंह के पुत्र रणथंभोर निवासी) सं० १६३० (उ० हस्त लि० हि ह० पु० का विवरण भा० १ ० १७१) धूकवि कृत रचनाकाल १५ वीं शताब्दी मे० प० स० भ० बम्बई 11 शुभचन्द्र मलकीर्ति भट्टारक दौलतराम काशलीवाल (बसवानिवासी) 13 , 12 " प्र० २० पृ० २३ पृ० २६ २८ पृ० पृ० ३० १६ श्रीपाल चरित्र (अपभ्रंश) इनमें नं० ८-१३ की प्रति कारंजा ज्ञानमन्दिर में और आरा-सिद्धान्त भवनमें भी है अब शेष ग्रन्थ कहाँ कहाँ पर हैं ? खोजकर रचनाकालादिका पता लगाना आवश्यक है। उपयुक्त सूची में नेमिदत्त और मल्लिभूषण के २ भिन्न व सकलकीर्ति एवं ब्रह्मजिनदास के २ भिन्न भिन्न चरित्र लिखे हैं वे संभव है. ४ के स्थान पर दो ही चरित्र हों । क्योंकि नेमिदत्त मल्लिभूषण के एवं जिनदास सकलकीर्तिके शिष्य थे संभव है सूची कर्त्ता कर्त्ताका नाम निकालने में गलती की हो। आशा है दि० विद्वान इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालेंगे । / 'योग्य पुरुषोंकी मित्रता दिव्यग्रन्थोंके स्वाध्यायके समान है; जितनी ही उनके साथ तुम्हारी घनिष्टता होती जायगी उतनी ही अधिक खूबियाँ तुम्हें उनके अन्दर दिखायी पड़ने लगेंगी ।' 'बुद्धि समस्त अचानक आक्रमणोंको रोकने बाला कवच है । वह ऐसा दुर्ग है जिसे दुश्मन भी घेर कर नहीं जीत सकते ।' — तिरुवल्लुवर
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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