SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ष २ किरण २] श्रीपालचरित्र साहित्य १५७ अत्यन्त प्रियताका ही द्योतक है। इतना ही नहीं ही दिग्दर्शन हो जाता है। लौकागच्छ और स्थानकवासी * विद्वानोंने भी, ( जो कि मूर्तिपूजाको नहीं मानते हैं) इस श्वेताम्बरोंके समान तो नहीं फिर भी दिगअपनाकर इसकी विशिष्ट लोकप्रियता सिद्धकी है। म्बर समाजमें भी इसका काफी प्रचार देखा जाता प्रकाशित श्रीपालचरित्र व गसोंके प्रतिवर्ष नये है । पं० दीपचन्द वर्णीकी अनुवादित सचित्र नये संस्करण कई सचित्र भी निकलते हैं और चतुर्थावृति इसका स्पष्ट निदर्शन है। दि० समाजकमसे कम उन सबकी ५० हजार प्रति तो अवश्य में यह कथा कहीं कहीं नंदीश्वरव्रत महात्म्यपर ही छप चुकी हैं। कही जाती है और उस व्रतकी आराधना कार्तिक फाल्गुन और श्रापाढ़के अन्तमें --- दिनों तक प्राचीन हस्तलिखित कई श्रीपाल रासोंकी कीजाती है। प्रतियाँ तो सचित्र भी पाई जाती हैं। जिनहर्षकृत ४६ ढालवाले रासकी एक मचित्र प्रति बीकानेरके श्रीपालजी कब हुए थे?-इस सम्बन्धमें क्षमाकल्याणजीके भंडारमें भी उपलब्ध है। श्वेताम्बरीय सबसे प्रचीन प्राकृत श्रीपाल-चरित्रमें यथाम्मरण एक सचित्र श्रीपाल रासकी प्रति बाब तो कोई निर्देश नहीं है पर पिछले चरित्रकारोंने पूरणचन्दजी नाहरके म्युज्यिममें भी है। श्रीपालजीको २० वे नीर्थकर श्री मुनिसुव्रत स्वामीके शासनमें हुअा बतलाया है । कई बम्बईके निकटवर्ती ठाणा शहरमें जिससे कि विद्वान श्रीपालजीकी आयु आदि पर विचार कर श्रीपालका प्राचीन सम्बन्ध कहा जाता है, विशिष्ट इन्हें नेमिनाथके समयमें होना भी कहते हैं; लोकादरके असाधारण उदाहरण स्वरूप खरतर- पर ये बातें कहाँतक ठीक हैं यह कहनेका कोई गच्छीय मुनि ऋद्धिमुनिजीके उपदेशसे मुनिसुव्रत निश्चित साधन नहीं है। स्वामीके मन्दिरमें श्रीपाल चरित्रकी घटनाओंके मुन्दर भाव पूर्ण दृश्य मय श्रीपालचरित्र मन्दिरके दिगम्बर प्राचीन ग्रन्थों में इस सम्बन्धमें क्या निर्माणकी योजना चल रही है, हजारों रुपयोंका उल्लेख मिलता है वह अज्ञात है। फंड हो गया है । और जगह भी खरीदली गई है। इससे पाठकोंको श्रीपालकथाके लोकादरका सहज- कथातुलना-श्वेताम्बर और दिगम्बर रचित __ चरित्र-प्रन्थोंमें कथावस्तुमें कितनी समता विषमता * स्थानकवासी मुनि चौथमलजीने मूल श्रीपाल है, इसकी तुलना करना भी आवश्यक है । दिगम्बर , चरित्रमें जहाँ जहाँ जिनमन्दिर व मूर्तिका उल्लेग्य था रचित प्राचीन प्रन्थ हमारे सामने नहीं है, अतः स्वयं मूर्तिपूजाके विरोधी होनेसे बदलकर स्थानक और श्वेताम्बरीय चरित्र प्रन्थोंमें सबसे प्राचीन रत्नशेमुनि श्रादिका उल्लेख कर दिया है और भी कई खरमूरिकृत प्राकृत श्रीपाल चरित्रसे दि० ब्रह्म सामान्य परिवर्तन कर डाले हैं।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy