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________________ वर्ष २ किरण २] भगवान महावीरके बाद का इतिहास १५३ पुराणमें लिखा है कि सगरने अपने बैरी हैहयों हैं । भविष्य पुराणसं पता चलता है कि हिन्दुओंऔर तालजंघोंका नाश करके उनके साथी शक, ने सूर्य भगवानकी मूर्ति बनाकर पूजना ईरान यवन, कम्बोज और पह्नवोंको भी नाश करना (फारिस) वालोंसे ही सीखा । सूर्य देवताकी चाहा, जिन्होंने डरकर उसके गुरू वशिष्ठकी शरण जो मूर्ति बनाई जाती है, उसके पैरोंमें घुटनोंतक ली । गुरुने सगरको समझा दिया कि मैंने उनको जूता होता है, जैसाकि ईरानी लोग पहनते थे। द्विजातिसे गिरा दिया है, अब तू उनको मत मार. हिन्दुस्तानमें सूर्य देवताकं हजारों मन्दिर बने, परन्तु तब सगरने यवनोंको सारा सिर मुंडवाते रहनेकी, इन मन्दिरोंके पुजारी सब ईरान देशसं ही बुलाये शकोंको आधा सिर मुंडानेकी, पारदोंको बाल गये, जो मग कहलाते थे। इस प्रकार इनस धर्म बढ़ाये रखनेकी, और पह्नवोंको दाढ़ी रखानेकी भी सीखते थे और म्लेच्छ भी कहनेमें नहीं आज्ञा दी। उनको और अन्यभी अनेक क्षत्रिय लजाते थे। जातियों को होम करने और वेद पढ़नेसे बंदकिया; जो हो. ब्राह्मणोंने ना इन शक आदिकोंको धर्म इससे वे सब जातियाँ म्लेच्छ होगई। वा जातिसे पतित वा म्लेच्छ इस कारण कहा कि एतच मयेव,त्वत्प्रतिज्ञा परिपालनाय उन्होंने जैन और बौद्ध होकर अहिंसा परमोधर्म:का निज धर्म द्विजसंग परित्यागं कारिताः । डंका बजाया, जिससं ब्राह्मणोंके हिंसा-मय यज्ञ स थेति तद् गुरु वचनम भिनंद्य और अन्य भी सबही हिंसा-मय धर्म-क्रियाओंका तेषां वेषान्यत्व मकारयत् । प्रचार बंद हो गया; परन्तु ब्राह्मणोंका प्रताप बढ़ने यवनान्मुंडिल शिरसोर्ध्व मुंडांछकान् पर जब उन्होंने इन शक और यवनोंको म्लेच्छ प्रतंबेके शान्यारदान् पहवांश्च श्मश्रुधरान कहना शुरू किया तब इनकी हाँ हाँ मिलानेक निःस्वाध्याय वषट् कारान् एतानन्याँश्च । लिय जैनियोंने भी इनको म्लेच्छ कहना शुरू कर क्षत्रियांश्चकार ते च निज धर्म परित्यागाद् दिया। इस बातका बड़ा आश्चर्य है ! सच तो यह ब्राह्मणैश्च परित्यक्ता म्लेच्छतां ययुः है कि जबसे जैन और बौद्धीका गज्य समाप्त होकर ___ इस प्रकार ज्यों २ शकोंकी हुकूमन हिन्दुस्तान- ब्राह्मणोंका गज्य हुआ था, नबसे जेनियों की रक्षा से उठती गई; त्यों त्यों उनकी निन्दा अधिक २ करने वाला अगर कोई था तो यह शक लोग ही होती गई, यहाँ तक कि वे म्लेच्छ बना दिये गये, थे, जिनके राज्य कालमें इनको अपने धर्म-पालनपरन्तु उनके वास्तविक गुणोंका गौरव हृदयसे कीसब ही सुविधायें बनी रहीं, इस कारण जैनियोंको कैसे हट सकता था, इसही कारण गर्ग संहितामें तो इन शकोंका महाकृतज्ञ होना चाहिये था. परन्तु लिखा है कि यद्यपि यवन लोग म्लेच्छ कहलाने संसार भी कैसा विचित्र है कि इन शकोंकी हुकूमन हैं; परन्तु वे ज्योतिषके पण्डित हैं, इस कारण ममाप्त होकर ब्राह्मणोंकी हुकूमतका डंका बजने पर ब्राह्मणोंसे भी ज्यादा ऋपियोंके ममान पूजने योग्य जैनी भी इन शकोंको म्लेच्छ कहने लगे।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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