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________________ वर्ष : किरण ] भगवान महावीर के बादका इतिहास १५१ गज्यमें तो महाराज अशोकके समान ही बौद्धधर्मकी पौण्ड काश्चोंड द्रविड़ाः काम्बोजा यवनाःशकाः उन्नति होकर अहिंसा धर्मका झंडा हिन्दुस्तानमें पारदा पहवाश्चीनाः किगता दरदाः खशाः फहराता रहा है, परन्तु इन शकों का राज्य समाप्त -१०,४३, ४४ होनेपर धर्मकं नामसे हिंसाका जो प्रचार इस भावार्थ-पौड़, औड़ . द्राविड़, कम्बोज, पूण्यभूमि हिन्दुस्तानमें हुआ है, वह अकथनीय यवन, शक, पारद, पह्नव, चीनी, किरात, दरद है। शक राज्यका सूर्य मंद पड़जानेपर ही यहाँ और खश यह सब क्षत्रिय थे । परन्तु आहिस्ता २ ब्राह्मणों द्वाग मनुस्मृति नामकी धर्मपुस्तक बनाई धर्म-क्रिया लोप होनेसे और ब्राह्मणोंको न गई है, जिसमें डंके की चोट पशुहिंसा करने और माननेसे पतित होगय । इनमेसे यवनोंका कथन मांस खानेको आवश्यक धर्मानुष्ठान बताया गया तो सबसे पहले किया जा चुका है. कि वह है और अहिंसाधर्मका पालन करनेके कारणही यूनान देशके रहने वाले थे और उनमें कुछ शकोंको पतित ठहराया गया है. मनुस्मृति नामकी ब्राह्मणधर्मी और अनेक बौद्धधर्मी हो गये थे। इम धर्मपुम्नकक कुछ नमूने इस प्रकार हैं: .. अहिंसामय बौद्धधर्मको मानना हो उनका ऐसा यत्रार्थ ब्राह्मणबध्याः प्रशम्ता मृग पक्षिणः भारी अपराध था जिसके कारण मनुमहागजने उनका क्षत्रिय जातिस नीचे गिरा दिया और भावार्थ:-यज्ञके वास्ते उत्तम २ पशु-पक्षि ब्राह्मणों धर्मभ्रष्ट बतादिया। पह्नव वा पार्थव भी कुछ के द्वारा बध किये जाने चाहिये। बौद्धधर्मी हो गये थे और चीन आदिकमें जाकर नियुक्तस्तु यथा न्यायं यो मांस नाति मानवः बौद्धधर्म फैलाते थे। अब रह गये शक वह तो पक्के जैन वा बौद्धधर्मी और अहिंमा परमोधर्म:का सप्रेन्य पशुनां याति मंभवानेक विंशतिम् डंका बजाने वाले थे ही। जब तक हिन्दुस्तानमें भावार्थ-श्राद्ध व मधुपर्क आदि अनुष्ठानों में नियुक्त उनकी हुकूमन रही, तब तक तो यहाँ दया धर्मका हुआ जो मनुष्य मांस नहीं खाता है. वह कई बार ही झंडा लहराता रहा था और यज्ञ आदिमें पशु पक्षियोंका होम करना बहुत ही मंद पड़गया था, पशुका जन्म लेता है। नब वह तो मनुमहागजके कोप भाजन बननहीं __ इस प्रकार ब्राह्मणोंको पशु-पक्षियोंको मारने थे. कम्बोज और दग्द भी इन शकोंके देश वामी और श्राद्धादिमें मांस ग्वानेकी कड़ी आज्ञा देकर । और माथी ही थे. नब वे कैम छूट मकते थे । मनुस्मृति अहिंमा धर्मके मानने वाले शक आदिकों हाँ ! चीनियोंकी बाबत जन्र हमी आती है; को जाति और धर्म दोनोंस किम तरह नीचं उन्होंने कब ब्राह्मण-धर्म माना था और कब वह गिराना है, यहभी सुन लीजिये: ब्राह्मणोंको पूजतेथे ? जिमके छोड़ देनमें मनुशनकैस्तु क्रिया लोपादिमाः क्षत्रिय नानयः महाराजको उन्हें पनिन करना पड़ा। उनका नो वपलन्वं गनालीक बामणादर्शनेनच अबतक हिन्दुस्तानमें कुछ धार्मिक सम्बन्ध भी
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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