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वर्ष २ किरण २]
भगवान महावीरके बादका इतिहास
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उपर विष्णु भगवानकी मूर्ति बनाई गई । गिरनार चीनसे हिन्दुस्तान आया था। वह अपनी यात्राके की झीलकी फिर मरम्मत कराई और बहुमूल्य वर्णनमें लिखता है कि, "स्नुतानमें उसने बौद्धधर्म विष्णुका मन्दिर बनवाया। ईस्वी ४६५ में फिर का बड़ा भारी प्रचार देखा, जहाँ प्रत्येक घर के हण लोग आये और पंजाबमें गांधार देश पर दरवाजे पर स्तूप बने हुये थे। घरवाले नित्य काबिज हो गये। फिर ईस्वी ४७० में हूणोंने स्कन्द. उनकी पूजा करते थे । वहाँके राजाने उसको गुप्त पर भी हमला कर दिया। राजा उनका मुक़ाबिला गोमती नामके संघाराममें ठहराया, जिसमें ३ हजार न कर सका और ४८० ईस्वी में मर गया. जिसके बौद्ध साधु रहते थे। उसके सामने वहाँ रथ-यात्रा बाद उसका भाई पुग्गत गद्दी पर बैठा. फिर ४८५ भी हुई। रथ बहुत बड़ा था, जो एक महलके समान में पुरगम का बेटा नरसिंहगुप्त बालादित्य राजा मालूम होता था और बहुत ही बढ़िया सजाया हुश्रा। वह बौद्ध धर्मी था। उसने मगध देशमें हुआ था, सोने चान्दीकी मूर्तियाँ उसमें विराजमान नालन्दा मुकाम पर ३०० फिट ऊँचा एक बौद्ध थीं । राजा मुकट उतार कर नंगे पाँव अगवानीको मन्दिर बनवाया जो सोने और रत्नोंकी जड़ाईसे जाता था और शाष्टांग प्रणाम कर पूजा करता था। जगमगाता था । ५३५ ईस्वीमें उसका बेटा कुमार- शहर से बाहर राज्यकी तरफसे एक संघाराम बना गुप्त द्वितीय गद्दी पर बैठा, परन्तु उसका राज्य मगधहुआ था, जो ८० बरसमें बनकर तय्यार हुआ था; के एक हिस्से पर ही रहा, नालन्दा बौद्ध धर्मकी उसमें बहुत भारी पञ्चीकारीका काम हो रहा थाशिक्षाका एक भारी केन्द्र रहा, जबतक कि मुसल मोने चान्दीके पात्रों और रत्नोंसे जगमगा रहा था, मानोंने श्राकर उसको जला नहीं दिया। यहाँसे पासही बुद्धदेवका मन्दिर था, जिसकी शोभा शकोंकी कहानी तो समाप्त होती है और होंकी वर्णन नहीं की जा सकती। सारे मन्दिरमें सोनेके कहानी शुरू होनी है. जो किमी दृमरे ही लेग्बमें पत्र जड़े हुए थे। यहाँ दस हजार बौद्ध माधु रहते लिम्वी जा सकती है।
थे।" वहाँसे वह काबुल आया और स्वात, गांधार
और तक्षशिला होता हुआ पिशावर पाया, जहाँ हिन्दुस्तानमें अब शकोंका राज्य नहीं रहा, बहत ऊँचा मुन्दर और बहुत मजबूत स्तुप देखा। लाखों करोड़ों शक जो यहाँ आये थे सब हिन्दु राम्तेमें जगह • अनेक स्तूप और मन्दिर दंग्वे होकर हिन्दुओंमें ही ग्ल-मिल गये। अब कोई परन्त रोमा भव्य और मुन्दर कोई न था। चीनी पहचान इस बातकी नहीं रही है कि कौन शक हैं तुर्किस्तानका गजा भी बौद्ध था, वहाँ चार हजार
और कौन उनके आनेसे पहलेके हिन्दू हैं, परन्तु बौद्ध माध रहते थे। हिन्दुस्तानसे बाहर उनके अपने देशमें जो शक लोग रह गये थे, वे बराबर बौद्ध बने रहे और उधर चीनमें भी इन्हीं शक और पहबाँकी बड़े भारी प्रभावके माथ बौद्ध धर्मको पूजते रहे। कृपास बौद्ध धर्म फैल गया था, जो अब तक ४०५ ईस्वी में फाइयान नामका एक बौद्ध यात्री कायम है। १४४ ईम्बीमें लोकानम नामका एक