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________________ अनेकान्त [मार्गशिर वीर निर्वाण सं० २४६५ दीनिकके बंट, तीनलाम्ब गउओंका दान करनेवाले बुद्धकी मूर्ति स्थापित कराई, जिसके लेखका वार्णासापर म्वर्ण दान करने और तीर्थ बनवाने अर्थ इस प्रकार है :-- वाले, देवताओं और ब्राह्मणोंको २६ गाँव देनेवाले बरसभर लाग्य ब्राह्मणोंको खिलाने वाले, पुन्य तीर्थ __ "क्षहरात चक्षुका क्षत्रप लिक कुसुलुक, प्रभासमं ब्राह्मणोंको पाठ भार्या देने वाले उसका पुत्र पतिक तक्षशिलामें भगवान बुद्धकी धर्मात्मा उपवदात (ऋषभदत्त) ने यह लेख मूर्ति प्रतिष्ठित कराता है, संघाराम भी, बुद्धांकी बनवाई, पोखगेमें जाकर ग्नान किया, तीनहज़ार पूजाके वास्ते," इमसे सिद्ध है कि इस समय गो और गाँव दिय, अश्वभूति ब्राह्मणको खत दिय" शकांका राज चक्षु अथोन अटक तक पहुँच गया था और वे परम बौद्ध धर्मी थे । शक राजा इसही प्रकार नहपानकी बंटी दक्षमित्राका __ मोगके मिक्क पंजाबमें बहुत मिलते हैं जिनपर भी दान है। उपवदातक भी अन्य कई भारी लिम्बा होता हे "राजविराज महतस मोअम" दान हैं। उमकं बंटे मित्रदेवणकका भी दान है। इन्हीं दिनों दक्वनमें गोतमी पुत्र राजा मातनहपानक अमान्य वत्मगात्री अयमका भी कर्णिन शाम राज छीनना शुरू कर दिया था, दान है। उज्जैन उनसे छिन ही गया था, इसकारण अब उर्जनके बाद शकोंने मथग जीता. फिर उनका राज केवल सिंध और गांधार में ही रहगया पंजाब भी लिया और यवनांका अन्त कर दिया. था । गातमी पुत्रक शिलालेखमें उसको शक, मथरामें उनका एक लख मिला जिसका अर्थ यवन और पह्नवों (पार्थिवों) का नाश करने वाला इम प्रकार है : और वाँका मंकर रोकने वाला लिखा है जिससे साफ जाहिर है कि वह कट्टर ब्राह्मण धर्म 'महाक्षत्रप रजलकी पटगनी यूवराज खर- को पालने वाला था, जात पातके भेदको खूब अोस्तसा बटी की मां श्रमिय कमुइअने प्रचार देता था, और शकोंके साथ विवाह सम्बंधअपनी मां दादी भतीजी सहित राजा मुकि को मरुतीके साथ रोकता था । गोतमी पुत्रका बेटा और उसके घोड़की भूपा करके शाक्य मनि बद्ध- सिष्टिपुत्र राजा हुआ, उसने राज्यको और भी का शरीर धातु प्रतिष्ठापन किया, स्तुप और ज्यादा बढ़ायाः मगध देश भी जीता और उड़ीसा संघागम भी" भी। ये सब गजा मातबाहनके नाममे प्रसिद्ध हुए और मालबाहन भी कहलाये। ईवी सन ६० इसही प्रकार एक और लेखमें महाक्षत्रप तक इनका राज रहा; इसके बाद ऋषिक तुम्बार ग्जुलके बेटे शुडसने बौद्ध संघकी पूजाके लिय नामकी शक जातिने हिन्दुस्तानपर चढ़ाई करके और सारे शकस्तानकी पूजाके लिये पृथ्वी दान की उनसे राज्य छीन लिया। इससे सिद्ध है कि यह शक कुछ तो बौद्ध धर्मी इधर तो सीस्तानके शकोंका अधिकार होगये थे और कुछ ब्राह्मण धर्मी। हिन्दुस्तानसे उठरहा था लेकिन दूसरी तरफ़ ___पंजाबके कैकय देशमें एक शक राजा मोगका बलम्ब बदखशांके ऋषिक तुम्बार जातिके शक अधिकार ईमासे ६५ बरस पहले होगया। फिर दिविजय करते हुए हिन्दुस्तानकी तरफ आरहे थे, ईमासे ६० बरस पहले उनका राज्य हजाग जिले वे लोग काशरार, चतराल और दरद देश होते तक होगया। ईमामे ४५ बरस पहले तक्षशिलामें हुए हजारेमे गांधार पहुंचे। उनकी पाँच रियासतें थीं।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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