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वर्ष २ किरण २]
भगवान महावीरके बादका इतिहास
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हैं कि वह नन्द राजाकी मुरा नामकी दासीका बेटा कर अपनी जान बचाई। फिर काश्मीरसे उत्तर था, इसही कारण मौर्य कहलाया। परन्तु उसके का इलाक़ा काम्बोज और बदग्वशां भी चन्द्रगुप्त के कट्टर जैनी होनेके कारण ही उसको द्वेषसे बदनाम आधीन हो गया। वह सारे हिन्दुस्तानका महा किया जाता है। मौर्य नामक क्षत्रियोंका राज्य प्रतापी राजा हुआ और जैन-धर्मका भारी प्रचार हिमालयकी तराईमें, नेपालके पास था । बुद्ध भगा किया । २४ बरस राज्य करके १२ बरसका भारी वानके निर्वाण होनेपर पिप्पली बनकं मौर्य क्षत्रियों- दुर्भिक्ष पड़ने पर अपने बेटे बिन्दुसारको राज ने भी उसकी चिताकी राखका भाग माँगा था। दे, श्री भद्रबाहु श्राचार्य के साथ, कर्णाटक देशभगवान महावीरक गणधरोंमें भी एक मोरिय- को चला गया, और मुनिदीक्षा लेकर भारी पुत्र था । चन्द्रगुप्त बालपन में ही वड़ा साहसी था। तप किया। नन्द राजानं उसके अनुपम साहसको देखकर ही उसके मार डालनेका हुक्म दिया था। वह भागकर बिन्दुसाग्ने भी बहुत योग्यताके माथ गज्य पंजाब चला गया। वहाँ सिकन्दरस मिला. परन्तु किया, परन्तु उमने बौद्ध धर्म ग्रहण कर, दुनिया उससे भी अनबन होगई जिससे सिकन्दरने भी भरमें उसका प्रचार किया। उसके पीछे उसका उसके मार डालनकी आज्ञा दी। वह साहसी वीर बेटा अशोक जो ब्राह्मण गनीसे पैदा हुआ था, वहाँस भी भाग निकला, वहीं पंजाबमें ही उसको राजा हुअा। वह चक्रवर्तीके समान महाप्रतापी चाणक्य नामका एक महानीतिज्ञ ब्राह्मण मिल गजा हुआ। उसने मध्यागशियामें खुतनको और गया। सिकन्दरके चले जानपर चन्द्रगनने चाणक्य तिब्बतके उत्तरमें तातार देशको भी जीता, जिमको की सलाहस सिकन्दरके जीते हुए प्रदेश में विद्रोह ब्रह्म-पुराणमें उत्तर कुरु लिग्या है । इस तरह चीन कराकर स्वयं उनका शासक बन बैठा । फिर उनहीं की हद्द तक उमका गज्य फैल गया। पश्चिममें लोगोंकी फौज बना कर मगधपर चढ़ाई कर दी। उमका गज्य यूनान तक फैला। उड़ीसाके राजाके और नन्द राजाको जीतकर वहाँका राजा होगया। माथ उसकी भारी लड़ाई हुई, जिसमें लाखों
आदी मरते देखकर उसको लड़ाई करने में सिकन्दरके मरने पर उसके सेनापति मैल्यू. घृणा हो गई । तबसे उसने लड़ाई लड़ना छोड़कर कसने उसका जीता हुअा राज्य दवाकर हिन्दु- बौद्ध-धर्मके द्वारा अहिंसा परमोधर्मः का प्रचार स्तानकी पश्चिमी हह तक अपना अधिकार जमा करना शुरू कर दिया । दूर दूर तक मबही देश में लिया था। ईसामं ३०५ बरस पहले उसने पंजाब धर्म उपदेशक भेजे, हुक्मनामे जारी किये, जिनपर भी चढ़ाई कर दी, परन्तु चन्द्रगुप्त ने उमको में हिंसाबन्द करनेकी कड़ी आज्ञा थी । जगह २ ऐसी मात दी कि उसने हिन्दुस्तानक बाहरके बड़े २ स्तम्भ वनवाकर उनपर अपनी प्राज्ञायें चार सूबे कंधार, हिरात. किलात और लालबेला खुदवाई, यज्ञ आदिक धर्म-अनुष्टानोंमें भी चन्द्रगुम को देकर और अपनी बेटी उसको व्याह 'गजाज्ञा द्वारा पशुहिमा बंद की; जिममं वैदिक