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________________ १४० अन् धर्मका प्रचार बहुत कुछ कम हो गया । और ब्राह्मणोंका जोर घट गया। जात-पाँतका झगड़ा दूर होकर सबहीको लौकिक और धार्मिक उन्नति करने का अवसर प्राप्त हो गया। अशोक के पीछे उसका बेटा कुणाल राजा हुआ। उसके पीछे उसका बेटा दशरथ राजा हुआ, जिसको सम्प्रति भी कहते हैं । उसको श्री आचार्य महाराज मुहस्तीन जैनी बनाया, उसने जैन धर्मका ऐसाही भारी प्रचार किया जैसा अशोकने बौद्ध धर्मका किया था। उसने अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, बलस्न, बुखारा, काशग़र, बदनशान आदि पश्चिमोत्तर देशों में भी धर्म प्रचारकं अर्थ जैन साधु भेजे, जहाँ शक, यवन और पत्र आदि जातियाँ रहती थीं । जगह २ जैनमन्दिर बनवाये । राजपूताने में उसके बनवाये मन्दिरोंके निशान अब तक मिलते हैं। वह सारे हिन्दुस्तानका महा प्रतापी राजा हुआ। उसके बाद शालिशुक, उसके बाद सोमधर्मा (देवधर्मा) उसके बाद शतधनुष, उसके बाद बृहद्रथ राजा हुआ; इसप्रकार ईसासे २८५ बरस पहले तक मौर्य वंशका राज रहा । इसी समय बृहद्रथ ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्रने तलवारसे राजाका सिर काट स्वयं मगधका राजा बन बैठा, तभीसे शुंग वंशका राज चला । परन्तु राजपूतानेमें मौर्यवंशी जैनी राजाओं का राज ईसाकी आठवीं शताब्दी तक बराबर बना रहा। चित्तौड़का क़िला मौर्य राजा चित्रांगदने बनवाया । मानसरोवर मौर्य वंशी राजामानने ७१३ ईसवीमें बनवाया। कोटा राज्यमें ७३८ सीका शिलालेख मौर्य - राजा धवलका मिला है। [मार्गशिर, वीर निर्धारण सं० २४६५ बम्बईक खानदेश जिलेमें १०६६ ईसवीके शिलालेखमें वहांक २० मौर्य राजाओं के नाम हैं, जिनके वंशज अबतक दक्षिणमें हैं और मोरं कहलाते हैं 1 इसप्रकार श्रीमहावीरस्वामी और भगवान बुद्ध के समय से लेकर चारसौ बरस तक जैनधर्मी राजा श्रेणिककी सन्तान और जैन-धर्मी महाराजा चन्द्रगुप्त मौर्य की सन्तानका राज्य मगधकी गद्दी पर बना रहकर सारे हिन्दुस्तानमें औ हिन्दुस्तानके बाहर भी दूर-दूर तक जैन-धर्म और बौद्ध धर्मका खूब प्रचार रहा । हिंसा कर्म कांडोंके स्थान में अहिंसा परमो धर्मः का डंका बजा और सबही को धर्म पालनका अधिकार मिला, जिसके बाद अब फिर पुष्यमित्र ब्राह्मण के द्वारा हिंसा मय वैदिक धर्मका प्रचार शुरु हुआ, उसने स्वयम दो बार श्रमेध यज्ञ किया, ब्राह्मणोंका महत्व प्रारम्भ हुआ, वैदिक धर्मको न मानने वाले, धर्मअनुष्ठानोंमें पशु-हिंसा न करने वाले शूद्र वा म्लेच्छ कहलाये जाकर घृणा की दृष्टि से देखे जाने लगे, जात-पातका भेद जोरोंके साथ उठ खड़ा हुआ । मगधसे लेकर पंजाब में जालंधर तक पुष्यमित्रने जैन और बौद्ध साधुयोंको क़त्ल कराया, उनके मठ मन्दिर और बिहार जलवाये; जिससे उनमेंसे बहुतोंने दूसरे देशोंमें जाकर जान बचाई। ३६ बरस उसका राज्य रहा, इस बीचमें उसने जैनों और बौद्धोंका जड़ मूल नाश करनेके वास्ते क्या कुछ नहीं किया ? इधर हिन्दुस्तान से बाहर क़ाबुल, ईरान, बलख.
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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