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________________ १३८ अनेकान्त [मार्गशिर, वीर निर्वाण सं० २४६५ करते थे। मिसर, रूम (टर्की) आदि सब देश ही आधीन हो गया । स्यालकोट के मुक्कामपर माझा उसके आधीन थे। पारस राजवानी थी, इसही के कठ लोग और क्षुद्रक और मालवाके राजा नगरीके नामसं यह देश फारस कहलाया। उम खूब लड़े, परन्तु पुरुको महायतासे सिकन्दरको समय सिकन्दरका पिता किलप यूनान के एक छोटे जीत हुई। आगे रावी और ब्यास नदीके पास से पहाड़ी इलाके मकदोनियाका राजा था और पहुँचने पर नन्द राजाकी शक्ति और प्रभावसे दाराकी आधीनता मानता था। वह यवन था। भयभीत होकर सिकन्दरकी सेनाने आगे बढ़नेसे यूनानके रहने वाले योन या यवन कहलाते थे। इनकार कर दिया। यह ईमासे ३२७ बरम पहले उसके मरने पर उसके महाप्रतापी बेटे सिकन्दरने की बात है। सारे यूनान पर अधिकार करलिया; फिर मिश्र और टर्कीको जीतता हुश्रा ईरान पर चढ़ गया, लाचार सिकन्दर जहलुम नदी तक वापिस दाराको मारा, ईरान पर कब्जा किया, फिर ईसास आया और वहाँसे दक्खिनकी तरफ बढ़ा। शिवि३३० बरस पहले सीस्तान (शकोंके रहनेका स्थान) राजने बिना लड़े ही श्राधीनता मानली । अगलस्य, को जीतकर कंधारको जीता, फिर बाख्तर पहुँचा, मालव और क्षुद्रक जातिवाले लड़े । इस लड़ाईमें समरकंद, बुग्वारा आदि सब देश जीते, यहाँ भी मिकन्दरकी छातीमें घाव होगया । आगे चलने पर शक लोग रहा करते थे। उधर ही एक हिन्दुस्तानी अम्बष्ट, वसानि और शौढ़ जानिके लोगोंने मुकाराजा शशिगुनका राज्य था; उसको भी जीतकर बिला नहीं किया । वहाँसे सिंधकी तरफ बढ़ा, मुचि. साथ लिया और पंजाब पर चढ़ाई की। रावल- कर्ण राज्यने भी मुकाबिला नहीं किया। ब्राह्मण पिंडीसे उत्तर में तक्षशिला (गांधार देश) के राजा राजा ने मुकाबिला किया, परन्तु सिकन्दरने उसको आम्भिने दूरसे ही उसकी आधीनता स्वीकार कर बहुत निर्दयतासे दबाया। फिर पातानप्रस्थ (हैदली और उसके साथ होलिया। पश्चिमी कंधारका राबाद सिंध) पहुंचा। लोग देश छोड़कर भाग राजा हस्थी खूब लड़ा; परन्तु हार गया, सिकन्दरने गये, फिर पश्चिमके रास्ते हिन्दुस्तानसे बाहर हो राज्य, उसके साथी संजयको देदिया. फिर गया और ईसासे ३२३ बरस पहले रास्ते में ही अवर्णको जीतकर शशिगुप्तको वहाँका राज्य दिया, उसका देहान्त होगया। पीछे उसके जीते हुए फिर तक्षशिला होता हुआ केकय देश (जहलम, देशोंको उसके सेनापतियोंने दबालिया। सिकन्दरशाहपुर, गुजरात) पर आया। वहाँका राजा पुरु ने अपने इस संग्रामके समयमें यूनानियों, ईरा बड़ी बहादुरीसे लड़ा, आम्भिने हमला करके उसको नियों और हिन्दुतानियोंके बीच आपसमें विवाहपकड़ लिया । सिकन्दरने उसको भी अपना सेना- संबन्ध होनेका बहुत ज्यादा रिवाज डाला था। पति बनालिया और ग्लुचुकायन देशको जीतकर इन दिनों मगधमें नन्द राजाका राज्य था। उसके आधीन क्रिया, चिनाबनदीके उसपार मुद्रक प्रजा उससे दुखी थी। जैन-धर्मी चन्द्रगुप्त ने ईसासे देशका राजा पुसका भतीजा था, वह भी बिना लड़े ३२१ बरस पहले उससे राज्य छीन लिया। कहते
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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