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________________ १२८ अनकान्त [कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५ 'मार्गानसारी' कहा है। इसके आगे 'श्रावक' वर्ग मर्दानगी म भरे हय विचार से इस स्वावलम्बन बतलाया है, जिसे बारह व्रत पालन करने पड़ते की भावनासे उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया और है और उसमें अधिक उत्क्रान्त-उन्नत हुए लोगों देवदुन्दुभि बज उठे ! “तुम अपने पैरों पर खड़े रहना के लिए सम्पृग त्यागवाला 'साधु- श्राश्रम' बत- सीवी, तुम्हें कोई दृसा सामाजिक, राजकीय या लाया है। देखिए, कैसी सुगम म्वाभाविक और आत्मिक मोक्ष नहीं दे सकता, तुम्हारा हर तरहका प्राक्टिकल योजना है। श्रावक क बारह व्रतों में मोक्ष तुम्हारे ही हाथमें है।"यह महामंत्र महावीर मादा, मितव्ययी और संयमी जीवन व्यतीत भगवान अपन शिप्य गौतमको शब्दसिनहीं,किन्तु करने की आज्ञा दी है। एक व्रत में म्वदेशरक्षाका बिना कह सिग्बला गये और इसीलिए उन्होंने गुप्त मन्त्र भी समाया हुआ है, एक व्रत में मबस गौतमको बाहर भेज दिया था । समाजसुधारकों को, बन्धुत्व रखने की आज्ञा है, एक व्रतमें ब्रह्मचयपालन देशभक्तों और आत्ममोक्षक अभिलाषियों को यह (म्बम्त्रीमन्तीप ) का नियम है, जो शरीरबल की मंत्र अपने प्रत्येक रक्तबिन्दुके माथ प्रवाहित करना रक्षा करताहै,एक व्रत बालविवाह, वृद्धविवाह और चाहिए। पुनर्विवाह के लिए खड़े होनको स्थान नहीं देता महावीर भगवानकं उपदेशोंका विस्तृत बिव. है, एक व्रत जिमसे आर्थिक, आत्मिक या राष्ट्रीय ग्ण करने के लिए महीनों चाहिए। उन्होंने प्रत्येक हित न होता हो ऐसे किसी भी काम में, तक विपयका प्रत्यक्ष और परोक्षरीतिसं विवेचन किया वि . अपध्यान में, चिन्ता नवग और शाक है। उनके उपदेशोंका संग्रह उनके बहुत पीछ में. ममय और शरीरबलकं यानेका निषेध करता देवगिणिन-जो उनके २७ वें पट्टमें हुए हैं। है और एक व्रत श्रात्मा में स्थिर रहने का अभ्यास किया है और उसमें भी देशकाल लोगोंकी शक्ति डालने के लिए कहता है। इन मब व्रतांका पालन वगैरहका विचार करके कितनी ही तात्विक करनेवाला श्रावक अपनी उत्क्रान्ति और समाज बातों पर स्थल अलकारोंकी पोशाक चढा दोहे तथा देशकी संवा बहुत अच्छी तरह कर सकता है। जिसमें इस समय उनका गुप्त भाव अथवा Mys जब भगवान की श्राय में ७ दिन शपथं तब ticism समज्ञनवाले पुरुप बहुत ही थोड़े है। इन उन्होंने अपने समीप उपस्थित हए बड़े भारी जन गुप्त भावाका प्रकाश उसी समय होगा जब कशासमूह के सामने लगातार ६ दिन तक उपदेश की बुद्धिवाल और आत्मिक आनन्दके अभिलापी अखण्डधाग बहाई और सातव दिन अपने सेकड़ा विद्वान् माइन्स, मानसशास्त्र, दर्शनशास्त्र मुख्य शिष्य गांतम ऋपि को जान बुझकर आज्ञा आदिको सहायतास जैनशास्त्रोंका अभ्यास करेंगे दी कि तुम समीप के गांवों में धर्मप्रचार के लिए और उनके छुपे हुए तत्वोंकी खोज करेंगे । जैनधर्म किसी एक वर्ण या किसी एक देशका धम नहीं; जाश्री, जब महावीर का मोक्ष हो गया, तब गौतम किन्तु सारी दुनिया सारे लोगों के लिए स्पष्ट किये ऋपि लौटकर आये। उन्हें गुरु-वियोग से शोक हए सत्योंका संग्रह है। जिस समय देशविदेशोंके होने लगा। पीछे उन्हें विचार हुआ कि "अहा स्वतन्त्र विचारशाली पुरुपोंके मस्तक इसको और मेरी यह कितनी बड़ी भूल है ! भला, महावार लगेंगे, उसी समय इस पवित्र जैनधर्म की जो इस भगवान को ज्ञान और मोक्ष किसने दिया था ? के जन्मसिद्ध ठेकेदार बने हुए लोगोंके हाथसे मिट्टी मेरा मोक्ष भी मेरे ही हाथ में है । फिर उसके लिए पलीद हो रही है वह बन्द होगी और तभी यह व्यर्थ ही क्यों अशान्ति भोगं ?" इस पौरुष या विश्वका धर्म बनेगा।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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