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________________ वर्ष २ किरण १ ] भगवान महावीरका मवामय जीवन १२७ बातों या विधियों को पकड़े रहनेवाले (Conser. विज्ञान को मानसशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र के vative ) कन्सरवेटिव पुरुप नहीं थे: किन्तु स्व. ही समान धर्मप्रभावनाका अग मानते थे । क्योंकि तंत्र विचारक बनकर देशकाल के अनुरूप स्वांग उन्होंने जो आठ प्रकार के प्रभावक बतलाये हैं में सत्य का बोध करनेवाले थे। श्वेताम्बर सम्प्र. उनमें विद्या-प्रभावकों का अर्थात साइन्मक ज्ञान दाय के उत्तराध्य यन सूत्र में जो केशी स्वामी और से धमकी प्रभावना करने वालों का भी समावेश गौतम स्वामी की शान्त-कान्फरेंसका वर्णन दिया होता है। है, उससे मालूम होता है कि उन्होंने पहले तीर्थ भगवान का उपदेश बहुत ही व्यवहारी करकी बांधी हुई विधिव्यवस्था में फेरफार करके (प्राक्टिकल ) है और वह आज कल के लोगों उसं नया स्वरूप दिया था । इतना ही नहीं, उन्होंने की शारीरिक, नैतिक, हार्दिक, राजकीय श्रार उच्च श्रेणी के लोगों में बोली जानेवाली संस्कृत मामाजिक उन्नतिक लिये बहुत ही अनिवार्य भाषा में नहीं, किन्तु साधारण जनता को मागधी जान पड़ता है। जो महावीर स्वामीक उपदेशों भाषा में अपना उपदेश दिया था । इम बातस का रहस्य समझता है वह इस वितंडावाद में हम लोग बहुत कुछ सीब मकते है । हम अपन नहीं पड मकता कि श्रमक धर्म मजा है और शास्त्र, पृजा पाठ, सामायिकादि के पाठ, पुराना, दम सब झर हैं। क्योंकि उन्मान म्याद्वादशैली साधारण लोगों के लिय दुर्वाध भाषा में बतलाकर ननिक्षपादि २५ दृष्टियांस विचार नहीं किन्तु उनक रूपान्तर, मूलभाव कायम रखके करने की शिक्षा दी है। उन्होंने द्रव्य ( पदार्थ वतमान बोलचाल की भाषाओं में, देशकालानुरूप प्रक्रति ) क्षेत्र (देश). काल (जमाना ) श्रार कर डालना चाहिए। भाव इन चागेका अपने उपदेशमें श्रादर किया महावीर भगवान का ज्ञान बहुत ही विशाल है।एमा नहीं कहा कि हमेशा ऐसा ही करना, था। उन्होंने पड़द्रव्य के स्वरूपमें सारे विश्वकी दृमरी तरहम नहीं।' मनुष्यामा म्वतत्र है, उसे व्यवस्था बनला दी है। शब्दका बंग लोक अन्त स्वतंत्र रहने देना-केवल मागमन करकं और तक जाता है, इसमें उन्होंने बिना कह ही टेला- अमुक देश कालमें अमुक गनिम चलना अच्छा ग्राफी समझा दी है। भापा पुद्गलात्मका होती होगा. यह बतलाकर उसे अपने देश कालादि है, यह कह कर टेलीफोन और फोनोग्राफ क. संयोगांन किम निम बताव करना चाहिय, आविष्कारकी नींव डाली है । मल, मूत्र आदि १४ यह मान लेने की म्वतंत्रता दे देना-यही स्याद्रास्थानों में सूक्ष्मजीव उत्पन्न हुआ करने है, इमा दर्शनी उपदेशकका कर्तव्य है । भगवानने छुन के गंगों का मिद्धान्त बनलाया है। पृथ्वी. दशवकालिक मत्रम मिचलाया है कि बात-पाने, वनस्पति आदिम जीव है, उनके इस सिद्धान्तको चलने. काम करते, सोने हए हर ममय यत्नाचार श्राज डाक्टर वमुने सिद्ध कर दिया है। उनका पाला, 'अर्थात “Work with attentiveness अध्यात्मवाद और म्याद्वाद वतमान के विना : uncerl mind" प्रत्येक कायको चित्त. रकों के लिए पथप्रदर्शक का काम देने वाला है। की एकाग्रता पर्वक-समतालवृत्तिपूर्वक कगे। उनका बतलाया हुआ लेश्याओं का और लब्धियों कार्य की सफलताक लिए. इमसे अच्छा नियम का स्वरूप वतमान थि प्रोसोफिस्टों की शोधों से कोई भी मानसतत्वज्ञ नहीं बतला सकता। सत्य सिद्ध होता है। पदार्थविज्ञान, मानमशान उन्होंने पवित्र और उच्च जीवनकी पहली सीड़ी और अध्यात्मक विषयमं भी अढाई हजार वर्ष न्यायापार्जिन द्रव्य प्राप्त करने की शक्ति को पहले हुए महावीर भगवान कुशल थे। वे पदार्थ. बतलाया है और इस शक्तिसे युक्त जीवको
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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