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वर्ष २ किरण १]
भगवान महावीरका सेवामय जीवन
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भी मृत्र में या ग्रन्थ में महावीर भगवान का पूरा में धीरे-धीरे विचार-बलको बढाया ज्ञानयोगी जीवन चरित नहीं है और जुदा-जुदा ग्रन्थकारों बने और फिर क्षत्रिय अथवा कर्मयोगी-समार का मनभेद भी है। उमममय दन्त कथायें. अति- के हित के लिए म्वार्थ त्याग करनेवाले वार बने। शयोक्तियुक्त चरित और सूक्ष्म बातों को स्थूल बालक महावीर के पालन पापण के लिये रूपम बतलानेक लिय उपमामय वणन लिम्बन पाँच प्रवीण धाय रकवी गई थी और उनक द्वारा की अधिक पद्धति थी और यह पद्धति कंवल उन्हें बचपन से वीररस के काव्यों का शोक जैनामें ही नहीं, किन्तु ब्राह्मग, ईमाई आदि के लगाया गया था। दिगम्बरों की मानता के अनु. सभी ग्रन्थों में दिखलाई देती है। इसलिए यदि सार उन्होंने आटवें वर्ष श्रावकके बारह व्रत आज कोई पुरुष पूर्वके किमी महापुरुपका बुद्धिगम्य अंगीकार किये और जगत् के उद्धार के लिये चरित लिखना चाहे तो उसके लिए उपयुक्त स्थल दीक्षा लेने के पहले उद्धार की योजना हृदयंगत वर्णनों, दन्तकथाओं और भक्तिवश लिम्बी हुई करने का प्रारम्भ इतनी ही उम्र से कर दिया। आश्रयजनक बातों में से बाज करके वास्तविक अभिप्राय यह कि वे बाल ब्रह्मचारी रहे। श्वेतामनुष्य-वरित लिम्बनका-यह बतलाने का कि म्बरी कहते हैं कि उन्होंने ३० वर्ष की अवस्था अमुक महात्मा किम प्रकार और कैम कामास तक इन्द्रियों के विषय भांग-व्याह किया, पिता उत्क्रान्त हाने गय और उनकी उक्रान्ति जगत बन और उत्तम प्रकार का गृहवाम (जलकमलवन) को कितना लाभदायक हुइ-काम बहुत ही किस प्रकार से किया जाता है इसका एक उदाजोखिमका है।
हरण व जगतकं मगन नपस्थित कर गयं । जब मगध देश कुण्डग्रामक राजा सिद्धार्थकी दीक्षा लेनकी इच्छा प्रकट की तब माता-पिता गनी त्रिशलादीक गभसं महावीरका जन्म ई० को दुःग्य हुआ, इसमे व उनके म्वगंवाम तक स० से ५२८ वर्ष (?) पहले हया। वं ताम्बर गृहम्बाश्रम में रहे । २८ व वप दीक्षा की तैयारी ग्रन्थमा करने है कि पहन व एक ब्राह्मणी के की गई किन्तु बड़े भाईने गंक दिया। तब दी गर्भ में आयर्थः परन्त पीठे वतांने उन्हें वप नक श्रीर भी गृहस्थाश्रम में ही ध्यान तप त्रिशला क्षत्रियाक गमन सादिया! तुम आदि करने हा रहे । अन्तिम वर्ष प्रचताम्बर धानको दिगम्बर ग्रन्थकता म्याकार ना करने। ग्रन्थों के अनुसार करोड़ों रुपयों का दान दिया। एमा मालूम होता है कि ब्राह्मणों और जनाक महावीर भगवान का दान और दीक्षा में विलम्ब चाच जो पारम्परिक स्पर्धा बढ़ रही थी, उम. व दो बात बन विचारणीय है । दान, शाल, नप कारण बहुत में ब्राह्मण विद्वानांने जैनाकी और और भावना इन चार मार्गों में में पहला माग बहन म नाचान ब्राह्मणांका अपने अपने मवम महज है। आंगलियों के निर्जीव नम्वों के ग्रन्या में अपमानिन करनेक प्रयत्र किया है। यह काट डालने के समान ही 'दान' करना महज है। गभसंक्रमण की कथा भी उन्ही प्रयत्राम का एक कच्च नम्ब के काटने के समान 'शील' पालना है। उदाहरण जान पड़ता है। इसमें यह मिद्ध किया अँगुली काटने के समान तप' है और सार शरीर गया है कि ब्राह्मणकुल महापुरुषों के जन्म लेने पर मेम्बत्व उठाकर आत्माको उसके प्रेक्षकक के योग्य नहीं है । इस कथा का अभिप्राय यह भी ममान तटस्थ बना देना 'भावना है। यह सबसे हो सकता है कि महावीर पहले ब्राह्मण और पीछ कठिन है । इन चारों का क्रमिक रहस्य अपने क्षत्रिय बने, अर्थान पहले ब्रह्मचयकी रक्षापूर्वक दृष्टान्त से स्पष्ट कर देने के लिए भगवानने पहले शक्तिशाली विचारक (Thinker) बने, पूर्व भवां दान किया, फिर मयम अङ्गीकार किया और