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कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५ ] चाणक्य और उसका धर्म
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है कि चाणक्य सम्राट् बिन्दुमार के समय तक चाणक्यक कौटिल्य, चाणक्य और विष्णुगुप्त विद्यमानहो और मौर्य-माम्राज्यको सुदृढ़ करने ये तीन नाम तो प्रसिद्ध हैं, किन्तु आचार्य श्री का निरन्तर प्रयत्न करता रहा हो। वस्तुनः हेमचन्द्रजीनं अपने अभिधान चिन्तामगि नामक आचार्य चाणक्य भारतक इतिहासमें ही नहीं, सुप्रसिद्ध कोश ग्रन्थमं चाणक्यक माठ नाम दिए अपितु संमारके इतिहासमें एक अद्वितीय और हैं। यथाअपूर्व महापुरुष है। मौर्य-माम्राज्यके रूपमें वात्स्यायनो मलिनागः कुटिलश् चणकात्मजः । सम्पूण भारतको संगठिन करना तथा भारतको द्रामिल: पक्षिल स्वामी विष्णुगुप्तोऽङ गुलश्च सः | इतना शक्तिशाली बनाना प्राचार्य चाणक्यका ही अर्थात्-वात्स्यायन, मल्लिनाग, कुटिल(कौटिल्य), कार्य है"।
चाणक्य (पालीभाषामें 'चरणक' और प्राकृतमें
चाणक होता है) द्रामिल, पक्षिलस्वामी, विष्णुगुप्त ___ सुज्ञ वाचक ! ऊपरके वाक्योंसे समझ गए
और अंगुल, ये चाणक्य के नाम हैं। होंगे कि मंत्रीश्वर चाणक्यने ही भारतीय महा
___यद्यपि अजैन प्रन्थकागन मंत्रीश्वर चाणक्य माम्राज्यका मर्जन किया था। मत्रीश्वर चाणक्य ।
के विषयमें बहुत कुछ लिखा है, परन्तु इनके धर्मक जानिक ब्राह्मगा थे लेकिन धर्मसे दृढ जैनीथे। मझ ख्याल है कि पु. पा. प्राचार्य श्रीविजयेन्द्रसूरि
विषयमें किसीने इशाग तक भी नहीं किया ; जब
कि सभी जैन ग्रन्थकागने एक मत होकर मुक्तकंठ जी महाराजने 'प्राचीन भारतवर्षका सिंहावली
से स्वीकार किया है कि मंत्रीश्वर चाणक्य जैन कन' नामक अपना पुस्तक पृ० २६ में लिया है कि "ती चाणक्यने पण जैन गणावे छ पठा
थे। भारतीय ऐनिहासिक साहित्यगे जैन माहित्य
का बहुत बड़ा हिम्मा है। इस तरफ हम उपेक्षा शास्त्रकारी एम कह छे के चाणक्य जैन न हता"। अब मुझे विश्वाम है कि.पा. आचार्य महाराज
नहीं कर सकते । साहित्य व इनिहासप्रेमी विद्वानों मेरे दिए हुए उपयुक्त प्रमागास अपने विचागेम
को मेरा मादर निमत्रण है कि वे मंत्रीश्वर
चाणक्यक धर्मक विषयमें मैंने जो प्रमाण दिए हैं अवश्य परिवर्तन करंग। मंत्रीश्वर चाणक्य जैन
उनको ध्यानसे पढ़ें, विचारविनिमय तथा चर्चा थे, इमक विषयमं वताम्बर और दिगम्बरके
करें और सत्य बात को स्वीकार करें। यही मेरी प्राचीन-अर्वाचीन सभी साहित्यका एक मत।
शुभेच्छा है।