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________________ ६ अनेकान्त कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५ रैवरेंड डाक्टर हान पेनहाल रीसने तो जीवदयाके उपर्युक्त वर्णनसे प्रगट है कि यदापि भारतविषयमें एक महसूसे भी अधिक कविताएँ वर्ष में शेष संसारकी अपेक्षा मांसाहारका प्रचार कम लिखी हैं। है, तथापि वह जीव दयाके कार्य में उससे बहुत रोरोंटोकी ह्यूमेन मोमाइटी तथा इसीप्रकारकी पीछे है । इंगलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और अमेअन्य संस्थाएं वहाँ इस विषयमें अत्यंत उपयोगी रिका मांसाहारी देश होते हुये भी जीवदयाके कार्य कर रही हैं। इस विषयमें डाक्टर ऐलेन भी सम्बन्धमें भारतसे बहुत आगे हैं । भारतवर्षका बड़ा भारी कार्य कर रहे हैं। दावा है कि वह कई ऐसे विश्वधर्मोकी जन्मभूमि 91-A - - ट्रिचनापलीके पास पुत्तुरके कुलुमियार्या मन्दिरमं दो तीन माहके भेड़के बच्चोंकी गर्दने दाँतोंसे काट कर अथवा छुरीम छेद करके देवी के सामने उनका रक्त चूमा जाता है !! इस घोर राक्षसी कृत्यने तो ग्वख्वार जंगली जानवरीको भी मात कर दिया है। அந்தோ ! இந்த அநாகரிகக்கொடுமை என்று அழியமோ है, जिसका आधार प्रेम और अहिंसा है, तो भी प्राणांतक कष्ट दिया जाता है। दक्षिण भारत इस यह अत्यन्त खंदकी बात है कि वह जीवदया और विषयमें शेप भारतसे भी बाजी मार ले गया है। प्रागिरक्षाके विषयमें मंसारके अन्य देशोंस बहुत वहाँ मूक पशुओंपर धर्मके नामपर बड़े-बड़े अमापीछे है । संसारका एक बहुत पिछड़ा हुआ नुषिक अत्याचार किये जाते हैं। जिन्हें देख-सुनदेश है। कर रोंगटे खड़े होते हैं और दिमाग़ चकग जाता है । लेखमें दिये गये कुछ चित्रांसे इन अत्याचारोंभारतवर्ष में अभी तक परमात्मा और धर्मके का आभास मिलता है। उनके यहाँ पुन: उल्लेग्य नामपर बड़े बड़े अत्याचार करके प्राणियोंको करनेकी आवश्यक्ता प्रतीत नहीं होती।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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