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________________ अनेकान्त [वर्ष १, किरण २ देवगढ़ ले-श्री० नाथूरामजी सिंघई श्री आई. पी. रेलवे लाइन जो देहलीसे बम्बईको करते जीर्ण दो कोट और मिलते हैं।दूसरा और तीसरा 'गई है उसी पर ललितपुर स्टेशन है । ललित- काट मदिराको घर लाल कोट मंदिरोंको घेरे हुए है । इन कोटोंके अन्दर देवापुरसे दक्षिणकी ओर दूसरा स्टेशन जाखलोन है, यहां लय होनेसे ही संभवतः इसका नाम देवगढ़ पड़ा होगा। से देवगढ़ ९ मील बैल गाड़ीका रास्ता है पैदलका मार्ग इसके भीतर सैंकड़ों जैन मंदिरोंके भग्नावशेष पाए करीब ७ मीलका है । मार्ग पहाड़ी घाटियोंमें हो कर जाते हैं। सैकड़ों क्या हजारों जैन मूर्तियाँ पर्वत पर है। देवगढ़ प्राम बहुत छोटासा ऊजड़ग्रामसमान ओंधी सीधी पड़ी हुई यत्र तत्र पाई जाती हैं। है । यहाँ पर खाने पीनेका कुछ भी सामान नहीं ____ बहुत ही छोटे छोटे मंदिरोंको छोड़ कर बाक़ीके मिलता है, इसके लिए जाखलौनसे प्रबंध करना होता मंदिर तीस हैं जिनमें अनुपम प्राचीन कारीगरी पाई जाती है। ये सब मंदिर क़रीब आठवींसे बारहवीं सदी है। ठहरनेके लिए पहले सिवाय डाकबंगलेके और कोई भी सुरक्षित स्थान नहीं था; किन्तु अब वहाँ एक तकके बने हुए मालूम होते हैं । उपर्युक्त मंदिरोंमें तीन जैन धर्मशाला बन गई है जिसमें पचास, साठ यात्री मंदिर विशेष उल्लेखनीय हैं । मंदिर नं०११ सबसे बड़ा एक साथ बड़े आरामके साथ ठहर सकते हैं । यहाँ मा मंदिर है जिसके पूर्वकी ओर कई एक मंदिर भिन्न भिन्न एक जैन पुजारीके सिवाय और कोई भी घर जैनियों समयके पाए जाते हैं। इसमें शान्तिनाथ भगवानकी का नहीं । आबादी अभी करीब सौ, सवा सौ की है खड़गासन मूर्ति है जिमकी ऊँचाई १२ फुट है, तीन जिनमें अधिकतर संख्या सहरियोंकी है । ब्राह्मणों और मूर्तियाँ १० फुटकी भी हैं बाकी चार चार और पाँच अहीरोंके तो बहुत ही कम घर हैं। पाँच फुटकी कई मूर्तियाँ हैं । श्राधीसे अधिक मूर्तियाँ खडगासन हैं । शान्तिनाथ भगवानकी मूर्तिके समयका देवगढ़ प्राम वतवा नदीके मुहाने पर नीची जगह पता नहीं चलता । यह मूर्ति अतिशयवान है। पुराने पर बसा हुआ है । यहांसे ३०० फुटकी ऊँचाई पर लोगोंका कहना है कि पहले इस मूर्तिके सिरके ऊपर करनालीका दुर्ग है जिसके पश्चिमकी ओर बतवा नदी का छत्रका पाषाण एक अंगुलके फासले पर था अब कलकल निनाद करती हुई बहती रहती है । इस पर्वत वह दो हाथके फासले पर है अर्थात् मूर्ति छोटी होती की चढ़ाई सोनागिरके समान सरल तथा सीधी है। जाती है । ऐसी अतिशतवान् मूर्तिके दर्शनोंका लाभ पहाड़ीकी चढ़ाई ते करने पर एक खंडहर द्वार मिलता सभी धर्मप्रेमियोंको लेना चाहिए। इस मंदिर के उत्तरी है जिसको 'कुँजद्वार' कहते हैं । यह द्वार पर्वतकी दालानमें एक विचित्र शिलालेख है जिसमें "ज्ञानपरिधिको बेते हुए कोटका द्वार है। इस द्वारको प्रवेश शला" खुदा हुआ है । १८ भाषाओं और १८ लिपियों
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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