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________________ अनकान्त [वर्ष १, किरण २ ....... . ....... सब ठाठ पड़ा रह जावेगा। ......... .... .. . ..... .... . . .. .. टुक हिसोहवा को छोड़ मियाँ ! मतदेस-विदेस फिरे मारा, कजान अजलकालटेहै दिनरातबजा कर नकारा। क्या बधिया-भैंमा-बैल-शुतर,क्यागौएँ-पिल्ला-सरभारा,क्या गेहूँ-चावल-मोठ-मटर, क्या श्राग-धुंआ,क्या अंगारा।। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बनजारा । कज्जाक अजल का लूटे है, दिन रात बजाकर नक्कारा ॥१॥ गर त है लक्खी बनजारा और खेप भी तेरी भारी है, अय गाफिल ! तुझसे भी चढ़ता।एक और बड़ा बेपारी है । क्या शक्कर-मिसरी-कंद-गिरी,क्या सांभर-मीठा-खारी है,क्या दाख-मुनक्का-सोंठ-मिरच,क्या केसर-लौंग-सुपारी है।। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बनजारा । कज्जाक अजल का लुटे है दिन रात बजा कर नकाग॥२॥ यह स्वेप भरे जो जाता है वह खेप मियाँ! मत गिन अपनी, अब कोई घड़ी पल "साअतमें यह खेप बदनकी है कानी। क्या थाल-कटोरे चाँदीके, क्या पीतलकी डिबया-ढकनी, क्या बरतन सोने-रूपेके, क्या मिट्टीकी हँडिया अपनी ।। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बनजारा। कज्जाक अजल का लूटे है दिन रात बजा कर नकारा ॥ ३ ॥ यह धम धड़ाका साथ लिये क्यों फिरता है जंगल जंगल, एक तिनका साथ न जावेगा मौजद हुआ जब आन अजल। घरबार-अटारी-चौपारी,क्या नासा ननसुख और मलमल,क्या चिलमन-पर्दे फर्शनये,क्या लाल पलंग औररंगमहल।। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बनजारा। क्रज्जाक अजल का लुटे है दिन रात बजा कर नकारा ॥४॥ हर मंजिलमें अब साथ तेरे यह जितना डेरा-डाँडा है, ज़र-दाम-दिरमका भाँडा है बंदूकसिपाह और खाँडा है। जब नायक तनसे निकलेगा जो मुल्कों मुल्कों हाँडा है, फिर हाँडा है, न भाँडा है, न हलवा है, न मॉडा है। मब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बनजारा । कजान अजलका लूटे है दिन रात बजा कर नकारा ॥५॥ १ माशा-तृष्णा, २ डाकू-लुटेरा, ३ मौत-काल, ४ ॐट, ५. समय, ६ धन-दौलत, ७ सेना-फौज,
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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