SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतीत गीत पौष, वीर नि०सं० २४५६] हमारी शिक्षा वालो !! और उसके नाम पर अर्घ चढाने वालो !!! जागो और अपने कर्तव्यको समझो । सम्यग्ज्ञानके स्थान पर अज्ञानका साम्राज्य आप कैसे देख रहे हैं ? उच्च ज्ञानके उपासक आज साधारण ज्ञानको तरस [ले० भगवन्त गणपति गोयलीय ] रहे हैं यह आप कैसे सहन कर रहे हैं ? समाजके नवयुवक आज शिक्षाके वास्ते किस किसके द्वारकी ठोकरें खा रहे हैं इसको क्या आप नहीं देखते ? समा अहे वीणाके टूटे तार ! जके सदस्य अशिक्षित रहने के कारण भूखों मरें यह तु अनन्त में लीन हो रहा और सो रहा मौन ; अब अधिक नहीं देखा जाता । अविद्याकै कारण रागिनियाँ सुननी तो हैं पर तुझे जगाए कौन ? उनका तिरस्कार देखते हुए हम उच्च और माननीय थका संसार पुकार पुकार। नहीं बन सकते । क्या आपको यही इष्ट है कि समाज अहे वीणा के टे तार ॥ अज्ञानावस्थामें पड़ा पड़ा इस संसारसे कूच कर जाय? शिक्षाके बिना न तो समाजमें सुधार ही हो सकता है ऐसे भी दिन थे जब तव-रव सुनने वायुप्रवाहऔर न वह धर्मके निकट ही पहुँच सकता है । सच थम जाते थे, और नाचने लगता था उत्साह । समझिये, सम्यग्ज्ञानकी उपासना दो चावल चढ़ा देने लोटताथा चरणों पर मार। में नहीं होती बल्कि वह उसी समय होगी जब कि अहे वीणा के टे तार ॥ आप समाजके हर एक व्यक्ति को लोक और परलोक निठुर बजानेवाला तुझको तोड़ गया किस ओर? की बातें समझनके योग्य बना दोगे । ज्ञानदानका पुण्य नियति ले गई उसे वहाँ, है जिस का ओर न छोर । नाम लेन मात्रसे ही नहीं हो सकता, वह उसी समय न स्थिर है पलभर को संसार । होगा जब आप तन, मन, और धनसे जैनों और अहे वीणा के टूटे तार ॥ अजैनों के वास्ते शिक्षाका द्वार खोल देंगे । आपको या गाता है क्या जानें कब से काई दीपक राग ; तो अब शिक्षित होना होगा और नहीं तो इस संसारसे ___ धाँधों कर जल उठा जगत लग गई भयंकर आग। अपना अस्तित्व ही खो देना होगा । समाजके सब ही ___ पडज में गादे राग मलार। सम्प्रदाय और दल इस शिक्षा प्रचारके काममें एक अहे वीणा के टूटे तार || होकर कार्य कर सकते हैं। अतः समाजको अब शीघ्रही ___ सन्मति ने गाया अतीत में मर्म-स्पर्शी गान ; अपना कर्तव्य पालन करना चाहिये । * वही तान सुनने को व्याकुल हैं त्रिलोक के प्राण । गुंजादे आज वही ॐ कार । अहे वीणा के टूटे तार ॥ __ * लेखकके भप्रकाशित "जनसमाजदर्शन" का एक अध्याय ।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy