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________________ ९४ अनेकान्त [वर्ष १, किरण २ ७.६४९ प्रतिशत ही खियाँ लिखी पढी थीं । कितना करना ही होगा। इस ओर हमारी बहिनोंको स्वयं भी बड़ा अन्तर है ! स्त्री शिक्षामें, बड़ौदे की जैन समाज ' ध्यान देना चाहिए। सर्वप्रथम ( १८.२४ प्रश०), द्वितीय बंगाल (१७.२४ शिक्षाप्रचारके कुछ उपाय प्रश०), तीसरे देहली (१४.३२ प्रश० ) और चौथे ____ एक महान विश्वविद्यालयकी स्थापनाके साथ विहार और उडीमा (१०.५९ प्रशत) हैं। सबसे पीछे हर हमें अन्य उपायोंको भी काममें लाना होगा । यद्यपि बम्बई (१.१२२ प्रशत) और राजपूताना (२.०३ प्रति उस विश्वविद्यालयमें धार्मिक शिक्षा, लौकिक शिक्षा शत) हैं । हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इन ही और स्त्रीशिक्षाका पूर्ण प्रबंध होगा तब भी निम्न दोनों प्रान्तोंमें जैनियोंकी सबसे अधिक संख्या है। लिखित साधनोंसे विद्याप्रचारमें विशेष सहायता हो ममाजकी निर्माता वास्तवमें स्त्रियाँ ही हैं। उन ही सकती है:की गोदमें आने वाला ममाज है । यदि आप चाहतं समाजमें निर्धन छात्रोंको छात्रवृति देकर उनकी हैं कि हमारे भावी उत्तराधिकारी योग्य हों, तो उसके सहायता की जाय और तीक्ष्ण बुद्धि विद्यार्थियोंको वास्ते आपको अच्छी स्त्रीशिक्षाका प्रबंध शीघ्र और पारितोषिक देकर उनका उत्साह बढाया जाय । इस अनिवार्य रूपसे करना होगा । भारतवर्षकी वर्तमान कार्यके वास्ते बम्बई के स्व० सेठ माणिकचन्दजी और राजनैतिक अवस्था भी शिक्षिता स्त्रियाँ ही चाहती है। देहलीके बाब प्यारेलालजीवकीलके समान शिक्षाकोप शिक्षिता स्त्रियोंके अभावसे हमारा सामाजिक जीवन (Eduentional funds) स्थापित करके अन्य धनी कितना पतित, निरानंदमय और कलहमय हो गया है भाई भी समाजके शिक्षाप्रचार कार्यमें सहायता इसे सबही बिचारवान अनुभव करते हैं। अतः अब कर सकते हैं। समाजको स्त्रीशिक्षाका शीघ्र ही प्रबंध करना चाहिये। ___ महिलाओं और कन्याओंके उत्साह बढ़ानेके वास्ते स्त्रियोंको कमसे कम इतनी शिक्षा तो अवश्य दीजानी विशेष प्रबंध हो। चाहिये जिससे वे गृहकार्य मितव्ययताके माथ चला योग्य और होनहार विद्वानोंको सहायता देकर सकें, संतान का पालन-पोषण कर सकें, कठिनता का विदेशोंमें विशेष ज्ञानकी प्राप्तिके वास्ते भेजा जाय । सामना करन में समर्थ हा श्रार घरा का आनन्दका वहाँ मे लौट कर वे तमाम धन वापिस करदें। स्थान बना सकें। इससे अधिकका प्रबंध हो जाय तो मनासंधी प्रश्नों पर विचार करने और शिक्षा और भी अच्छा । स्त्रियों में शिक्षा प्रचारके वास्ते हमें प्रचारके वास्ते भारतवर्षीयजैनशिक्षा समिति ( All विशेषरूपसे प्रयत्न करना चाहिये। जगह जगह कन्या- India Jain Eucational Board) स्थापित की पाठशालाएँ, कन्यामहाविद्यालय और विधवाश्रम जाय। इसही प्रकार की समितियाँ भिन्न भिन्न प्रान्तों स्थापित करने चाहियें और उनकी देखरेखका समुचित में भों स्थापित की जा सकती हैं। प्रबंध होना चाहिए । अब स्त्रीशिक्षाको अनावश्यक अथवा इसका विरोध करनेसे काम न चलेगा। यह समाजका कर्तव्य समय और देशकी जबरदस्त मांग है, जिसे आपको पूरा सम्यग्ज्ञानके उपासको ! उसकी नित्य पूजा करने
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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