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________________ पौष, वीर नि०सं०२४५६] हमारी शिक्षा (Products) और वहां के निवासियोंकी आवश्यक्ता जैनधर्मके अमूल्य सिद्धान्त समझा सकेंगे, जो आपके में खूब परिचित है। धर्मकी विशेषता अन्य धर्मों के मुकाबलेमें दिखला सकेंगे, किन्तु आज कल का व्यापार उच्च कोटिके कला- और जो आपके प्राचीन इतिहासको प्रकाशमें लासकेंगे। कौशल : Industry) पर अवलम्बित है । जिस व्यापार वहाँ से व्यापारिक विद्या, कला-कौशल और समाजके पीछे उद्योग धंदे हैं, जिस व्यापारकी बुनियाद कला- शास्त्र आदि उपयोगी विषयोंके विशेषज्ञ निकलेंगे जो कौशल पर है वह ही व्यापार लाभदायक हो सकता है। केवल समाजकी रक्षा ही नहीं किन्तु उसे एक प्रतिष्ठित आपको यह भली भांति मालूम होना चाहिए कि पद दिलानेमें भी समर्थ होंगे । ऐसा विश्व-विद्यालय हमारे देशसे करोड़ों रुपया प्रति वर्ष विदेशों को जा देशके किसी भी केन्द्रस्थ स्थान पर स्थापित किया जा रहा है । आपको यहाँ के कच्चे मालको उपयोगमें लाकर सकता है । उसके लिए धनकी आवश्यक्ता होगी, जिस उससे भिन्न भिन्न वस्तुएँ तय्यार कराके, देशके इस को पूरा कर देना समाजके वास्ते कठिन नहीं है। यह रुपयको बचाना होगा । किन्तु यह आप उस समय विश्व-विद्यालय जहाँ जैन समाजके वास्ते लाभदायक ही कर सकते हैं जब कि आप उच्च कोटिकी औद्यो- होगा वहां देशका भी कल्याण करेगा। गिक शिक्षा का प्रबंध करें। जैनसमाजमें स्त्री शिक्षा ___ सबसे अंतमें, मैं समाजकी उस आवश्यकताकी . स्त्रीशिक्षाके सम्बंधमें भी यहाँ कुछ लिखना आवतरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ जिस श्यक प्रतीत होता है । गृहस्थ रूपी गाड़ीके पुरुष और पर समाजके जीवन और मरणका प्रश्न है । आपका स्त्री दो पहिये हैं। गाडीको सुचारू रूपसे चलानेके समाज मृत्यु-शय्या पर लेटा हुआ है । जिसको बचाना ना वास्ते दोनोंका ही ठीक होना आवश्यक है । और - अपनी ही रक्षा करना है । उसके बचानमें आप तब ही शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जो मानव समाजको सफल हो सकेंगे जब कि आप समाजशास्त्रके अच्छे १ अपने कर्त्तव्य पालनके योग्य बना सकता है। हमारे अच्छे जानकार पैदा करेंगे । वे समाजशास्त्री ही पूर्व पुरुषोंने इस बात को भली भांति समझ कर ही आपकी मरती हुई समाज की रक्षा कर सकेंगे। स्त्रीशिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिया था । प्राचीन इस प्रकारसंक्षेपमें, समाजको अच्छे अच्छे धर्मा कालमें जैनमहिलाएँ कितनी सुशिक्षता होती थीं, चार्यों, व्यापारियों, बैंकरों, कलाकौशलाचार्यों, और उसकी कुछ झलक हम अपने पुराणग्रंथोंसे पा सकते समाजशास्त्रियोंकी आवश्यकता है। हैं। कवि कन्तीदेवी, रानी चेलना, मैनासुन्दरी, सुलोजैन-विश्व-विद्यालय चना और सती अञ्जनाके नामोंमे हम सब परिचित उपर्युक्त आवश्यकताएँ श्रापकी वर्तमान पाठशालाएँ हैं। किन्तु पीछे दिए हुए अंकोसे यह स्पष्ट रूपसे प्रकट या हाईस्कूल पूरी नहीं कर सकते । उनकी पृर्तिके वास्ते हो जाता है कि हमने स्त्रीशिक्षा जैसे उपयोगी विषय आपको एक विशाल विश्व-विद्यालय स्थापित करना की तरफ अब तक समुचित रूपसं ध्यान नहीं दिया होगा। उससे ऐसे ऐसे विद्वान् प्रकट होंगे जो आपके बल्कि उसकी अवहेलना की है। जहाँ सन् १९२१ में प्राचीन साहित्य का उद्धार कर सकेंगे, जो जनताको जैन पुरुष ५१.६२ प्रतिशत लिखे पढे थे, वहाँ केवल
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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