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________________ अनकान्त [वर्ष १, किरण २ साहित्य, धर्म, और संस्कृतिको प्रकाशमें लानेके वास्ते derstanding of sound principles increasसंस्कृत, प्राकृत और दक्षिणी भाषाओं के ऐसे विद्वानों ed.............There has been introduced की आवश्यक्ता है जो इस कामको प्रकारका such complerity into modern business and such a high degree of specialization सकें और संमार के जैनंतर साहित्य, संस्कृति और that the young man who begins withसिद्धान्तोंमे अपने साहित्य, संस्कृति और सिद्धान्तोंकी out the foundation of an exceptional तुलना करने में भी समर्थ हो । वे प्राचीन लिपियों को training is in danger of remaining a पढ़ सकें और मातृभापा द्वारा उसका सर्वसाधारणको mere clerk or book-keeper."* ज्ञान करा सकें। इस प्रकारके विद्वान् हमारे मौजूदा अर्थात 'एक व्यापारीकी मानसिक शक्ति आज संस्कृत विद्यालयोंसे कदापि नहीं निकल सकते । हमारी इतनी अधिक होनी चाहिये जितनी कि पहले आवश्यसामाजिक आवश्यक्ताएँ भी कम नहीं हैं । जैनसमाज क्ता नहीं थी । जिम प्रकार वस्तु भेजनेके साधन, तार, एक व्यापार-प्रधान समाज है । किन्तु उमका वर्तमान समन्दरी विद्युततार और टेलीफोनके पानसे एक व्यापार व्यापार नहीं, कोरी दलाली है । अतः समाज- व्यापारीका कार्यक्षेत्र बढ़ गया है वैसे ही उपर्युक्त में उच्च कोटिक व्यापारी पैदा करने के वास्त हमें उन सिद्धान्तोंको भली भांति समझनेकी आवश्यक्ता भी बढ़ कोटि की ही व्यापारिक शिक्षाका प्रबंध करना होगा। गई है । आधुनिक व्यापारमें पेचीदगी और उच्च कोटि यदि हम समाजमें मामूली दलालों, दुकानदारों और की विशेपज्ञता इतनी आगई है कि जो कोई भी नवमुनीमोंके स्थानमें बड़े बड़े बैंकर, बड़ी बड़ी कम्पनियोंके युवक समुचित शिक्षाकी बुनियादके बिना इस काममें डायरेक्टर और चतुर व्यापारी देखना चाहत हैं तो लगता है उसके महज एक क्लर्क अथवा एक मुनीम ही हमें अनिवार्य रूपमे अच्छी व्यापारिक शिक्षाका प्रबन्ध रह जान का भय है।' करना होगा । व्यापारिक शिक्षाकी आवश्यक्ता को क्या ही अच्छा हो जो हमारे भाई इन शब्दों पर हमारं भाई चाहे न समझें किन्तु विदेश वालोंने इस अच्छी तरह ध्यान दें और वर्तमान ढंगके व्यापार को मुहतम अनुभव कर लिया है। तभी तो मंमारका सारा समझकर अपना और देश का कल्याण करें । इस व्यापार उनके हाथमें है और हम उनका मुँह देखतं बात को हर एक जैनीको हृदयांकित कर लेना चाहिए रहते हैं । दखिये एक अमरेकिन बैंकर मिस्टर वेंडिर कि देशकी प्रधान व्यापारी जाति होने के कारण देश लिप क्या कहता है: के व्यापार को समुन्नत करना उसका सबसे पहला " The mental requireinent of a busi- कर्तव्य है। वर्तमान कालमें वह ही व्यापारी सफल हो nessman needs to be greater today than सकता है जो बैंकिंग (Bunking), विनिमय (Exwas ever before necessary. Just as the change ) व्यापारिक भूगोल ( Commercial sphere of the businessman's actions has broadened with the advent of trang Geography ) और अपने कार्यक्षेत्र की उपज portation, telegraphs, cables and tele . "The problem of National Education in India phones so have the needs of broad un. L. Liput Rai. Page 213)
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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