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अनेकान्त
[ वर्ष १, किरण १
ही, पीड़ितोंकी करुण पुकारको सुन कर उनके हृदय से दयाका अखंड स्रोत बह निकला। उन्होंने लोकोद्धार का संकल्प किया, लोकोद्धारका संपूर्ण भार उठाने के लिये अपनी सामर्थ्यको तोला और उसमें जो त्रुटि थी उसे बारह वर्षके उस घोर तपश्चरण के द्वारा पूरा किया जिसका अभी उल्लेख किया जा चुका है। इसके बाद सब प्रकार से शक्तिसम्पन्न होकर महावीर ने लोकोद्धार का सिंहनाद किया - लोकमें प्रचलित सभी अन्याय-अत्याचारों, कुविचारों तथा दुराचारोंके विरुद्ध आवाज उठाई और अपना प्रभाव सबसे पहले ब्राह्मण विद्वानों पर डाला, जो उस वक्त देशके 'सर्वे सर्वा:' बने हुए थे और जिनके सुधरने पर देशका सुधरना बहुत कुछ सुखमाध्य हो सकता था। आपके इस पटु सिंहनादको सुनकर. जो एकान्तका निरसन करने वाले स्याद्वादी विचार पद्धतिको लिये हुए था, लोगोंका तत्त्वज्ञान विषयक भ्रम दूर हुआ, उन्हें अपनी भूलें मालूम पड़ीं, धर्म-अधर्म के यथार्थ स्वरूपका परिचय मिला, आत्मा - अनात्माका भेद स्पष्ट हुआ और बन्ध-मोक्षका सारा रहस्य जान पड़ा; साथ ही, झूठे देवी-देवताओं तथा हिंसक यज्ञादिकों परमे उनकी श्रद्धा हटी और उन्हें यह बात साफ़ जँच गई कि हमारा उत्थान और पतन हमारे ही हाथ में है, उसके लिये किसी गुप्त शक्तिकी कल्पना करके उसीके भरोसे बैठ रहना अथवा उसको दोष देना अनुचित और मिथ्या
। इसके सिवाय, जातिभेदकी कट्टरता मिटी, उदारता प्रकटी, लोगोंके हृदयमें साम्यवादकी भावनाएँ दृढ हुई और उन्हें अपने आत्मोत्कर्ष का मार्ग सुभ पड़ा। साथ ही, ब्राह्मण गुरुत्रों का आसन डोल गया, उनमें से इन्द्रभूति गौतम जैसे कितने ही दिग्गज विद्वानों ने भगवान प्रभाव से प्रभावित हो कर उनकी
प्राणी धधकती हुई आगमें डाल दिये जाते थे— और उनका स्वर्ग जाना बतलाकर अथवा 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' कहकर लोगोंको भुलावेमें डाला जाता था और उन्हें ऐसे क्रूर कर्मों के लिये उत्तेजित किया जाता था । साथ ही, बलि तथा यज्ञके बहाने लोग मांस खाते थे । इस तरह देशमें चहुँ ओर अन्यायअत्याचारका साम्राज्य था — बड़ा ही बीभत्स तथा करुण दृश्य उपस्थित था— सत्य कुचला जाता था, धर्म अपमानित हो रहा था, पीड़ितोंकी आहांके धुएँ से आकाश व्याप्त था और सर्वत्र असन्तोष ही श्रमन्तोष फैला हुआ था ।
यह सब देख कर सज्जनोंका हृदय तलमला उठा था, धार्मिकोंको रातदिन चैन नहीं पड़ता था और पीड़ित व्यक्ति अत्याचारों से ऊब कर त्राहि त्राहि कर रहे थे । सत्रोंकी हृदय तंत्रियोंसे 'हो कोई अवतार नया' की एक ही ध्वनि निकल रही थी और सबकी दृष्टि एक ऐसे असाधारण महात्माकी ओर लगी हुई थी जो उन्हें हस्तावलम्बन देकर इस घोर विपत्तिमे निकाले । ठीक इसी समय प्राची दिशा में भगवान महावीर भास्कर का उदय हुआ, दिशाएँ प्रसन्न हो उठी, स्वास्थ्यकर मंद सुगंध पवन बहने लगा, सज्जन
तथा पीडितों के मुखमंडल पर आशाकी रेखा दीख पड़ी, उनके हृदयकमल खिल गये और उनकी नसनाड़ियोंमें ऋतुराज के आगमनकाल जैसा नवरसका संचार होने लगा ।
महावीरका उद्धारकार्य
महावीरने लोक स्थितिका अनुभव किया, लोगों की अज्ञानता, स्वार्थपरता, उनके वहम, उनका अन्धविश्वास, और उनके कुत्सित विचार एवं दुर्व्यवहार को देखकर उन्हें भारी दुःख तथा खेद हुआ। साथ