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भगवान महावीर और उनका समय
मार्गशिर, वीरनि० सं० २४५६ ]
समीचीन धर्मदेशना को स्वीकार किया और वे सब प्रकार से उनके पूरे अनुयायी बन गये । भगवान ने उन्हें 'गणधर' के पद पर नियुक्त किया और अपने संघ का भार सौंपा। उनके साथ उनका बहुत बड़ा शिष्यसमुदाय तथा दूसरे ब्राह्मण और अन्य धर्मानुयायी भी जैनधर्म में दीक्षित हो गये। इस भारी विजय से क्षत्रिय गुरु और जैनधर्म की प्रभाववृद्धि के साथ साथ तत्कालीन (क्रियाकाण्डी) ब्राह्मण धर्म की प्रभा क्षीण हुई, ब्राह्मणों की शक्ति घटी, उनके अत्याचारोंमें रोक हुई, यज्ञ-यागादिक कर्म मंद पड़ गये - उनमें पशुओं के प्रतिनिधियों की भी कल्पना होने लगी- और ब्राह्मणों के लौकिक स्वार्थ तथा जाति-पांति के भेद को बहुत बड़ा धक्का पहुँचा | परन्तु निरंकुशता के कारण उनका पतन जिस तेजी से हो रहा था वह रुक गया और उन्हें सोचने विचारनेका अथवा अपने धर्म तथा परिणति में
फेरफार करने का अवसर मिला ।
महावीरकी इस धर्मदेशना और विजयके सम्बन्ध में कवि सम्राट् डा० रवीन्द्रनाथ टागोरने जो दो शब्द कहे हैं वे इस प्रकार हैं :
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Mahavira proclaimed in India the message of Salvation that religion is a reality and not a mere social convention, thut salvation comes from taking refuge in that true religion, and not from observing the external ceremonies of the community, that religion can not regard any barrier between man and man as an eternal verity. Wondrous to relate, this teaching rapidly overtopped the barriers of the tuces' abiding instinct and conquered the whole country. For a long period now the intinence of
Kshatriya touchers completely suppres sed the Brahmin power.
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अर्थात्- महावीरने डंके की चोट भारतमें मुक्तिका ऐसा संदेश घोषित किया कि--धर्म यह कोई महज़ सामाजिक रूढि नहीं बल्कि वास्तविक सत्य है – वस्तु स्वभाव है, और मुक्ति उस धर्ममें आश्रय लेनेसे ही मिल सकती है, न कि समाजके बाह्य आचारोंका - विधिविधानों अथवा क्रियाकांडोंका -- पालन करनेसे, और यह कि धर्म की दृष्टिमें मनुष्य मनुष्य के बीच कोई भेद स्थायी नहीं रह सकता ।
होता है कि इस शिक्षणन बद्धमूल हुई जातिकी हद बन्दियोंको शीघ्र ही तोड़ डाला और संपूर्ण देश पर विजय प्राप्त किया । इस वक्त क्षत्रिय गुरुओंके प्रभावने बहुत समय के लिये ब्राह्मणोंकी सत्ताको पूरी तौर में दबा दिया था ।
इसी तरह लोकमान्य तिलक आदि देशके दूसरे भी कितने ही प्रसिद्ध हिन्दू विद्वानोंन, अहिंसादिक के विषयमें, महावीर भगवान अथवा उनके धर्मकी ब्राह्मण धर्मपर गहरी छापका होना स्वीकार किया है, जिनके वाक्योंकी यहाँ पर उद्धृत करने की जरूरत नहीं है । विदेशी विद्वानोंके भी बहुतसे वाक्य महावीरकी योग्यता, उनके प्रभाव और उनके शासनकी महिमा-संबंध में उद्धृत किये जा सकते हैं परन्तु उन्हें भी छोड़ा जाता है । श्रतु ।
वीर-शासनकी विशेषता
भगवान महावीरने संसार में सुख-शान्ति थिर रखने और जनताका विकास सिद्ध करनेके लिये चार
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महासिद्धान्तोंकी – १ अहिंसावाद, २ साम्यवाद, ३ अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) और ४ कर्मवाद नामक महासत्योंकी - घोषणा की है और इनके द्वारा जन