________________
-rrrrror
पौष, वीर निसं०२४५६]
कर्णाटक-जैनकवि हैं। इसमें पंप, रन, नेमिचन्द्र आदि कवियोंके पद्य विजय (चन्द्रप्रभपुराण) , गुणवर्म (पुष्पदंतपुराण), उदाहृत किये हैं और रुद्रभट्ट, विद्यानाथ, हेमचन्द्र, जन्नुग (अनन्तपुराण) , मधुर (धर्मनाथपुराण), नागवर्म, कविकामका अनुकरण करना स्वीकार किया अभिनवपंप (मल्लिनाथ पुराण और रामायण) , होन्न
(शान्ति पुराण) , कण्णप (नेमिचरित और दुरितारी - शारदाविलासमें काव्यका जीव जो ध्वनि है वीरेशचरित), नेमिचन्द्र(लीलावती),बन्धवर्म(हरिवंश) उसका प्रतिपादन किया गया है। कनड़ीमें ध्वनिविषय चन्द्रप्रभ चरित में २८ सन्धियाँ और ४४७५ पद्य का यह पहला ही प्रन्थ जान पड़ता है । इस ग्रन्थ का हैं। प्रारंभ में कहा है कि मैं कविपरमेष्ठी और गुणभद्र कंवल ध्वनिव्यंग-विवरण नामका अध्याय ही प्राप्य है। की कही हुई कथा को कानड़ी में लिखता हूँ। पहले यह ग्रन्थ कविन अपन आश्रयदाता साल्वमल्ल राजा चन्द्रनाथ, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साध, रत्नत्रय, की कीनिके लिए लिखा। काव्यप्रकाशक और साहित्य सरस्वती, गणधर, ज्वालामालिनी, विजययक्ष, और सुधार्णव इन दो ग्रन्थोंका इसने उल्लेख किया है।
पिरियशहरके अनन्त जिनको कमलभंग महिषिकुंवैद्यसांगत्यमें कविन अनेक स्थानों में अपना खुदका भापुराधीश्वर ब्रह्मदेव की स्तुति की है । इसके बाद मत प्रतिपादित किया है।
गन्धहस्तिमहाभाष्यकर्ता समन्तभद्र, सपादलक्ष१३ दोड्डय्य (ल० १५५०) प्रमाण चतुर्विंशतितीर्थकरपुराणकर्ता कविपरमेष्ठी, यह जिनपुराणकथानिपुण देवप्पका पुत्र और पण्डित पार्वाभ्युदय और श्रादिपुराणके कर्ता सर्वज्ञ जिनसेन, मुनिका शिष्य था । देवप्प आत्रेय गोत्रका जैन ब्राह्मण तेईम तीर्थकगेंके चरित लिखनेवाले गुणभद्र,तत्त्वौपधथा और होय्सल देशके चंग प्रदेशके पिरियराज शहर शब्द-शास्त्रकार पूज्यपाद, पण्डिताय, अकलंक, वादिविमें राज्य करने वाले यदुकुल तिलक विरुपराज का द्यानन्द और देवकीर्ति का म्मरण किया है। दरबारी कत्थक था। दोड्य्यन * अपने चन्द्रप्रभ चरित
१४ नेमण (१५५६) में विरुपराजेन्द्र की स्तुति की है। जैन ब्राह्मण पं० इमने ज्ञानभास्कर चरित नाम का प्रन्थ लिखा सलिवन्द्रका पुत्र वोम्मरस इसी राजाका प्रधान था । है। इसमें १३३ पद्य हैं और बतलाया है कि अध्यात्मप्रन्थके आरंभ में नीचे लिखे कवियों का उनके ग्रन्थों शास्त्रपठन और ध्यान यह मोक्षके मुख्य साधन हैं । सहित स्मरण किया है
बाह्य वेप और कायश्लेश बहुत प्रयोजनीय नहीं हैं। पंपराज (आदिपुराण) , रन्न (अजितपुराण), प्रन्थके प्रारम्भ में निजात्माका वन्दन और गुणस्मरण ____ यह राजा साहित्य का बड़ा प्रेमी था मौर इसने शांति किया है। यह समडोलीपुरके श्रादिजिनालयके गुरु जिन की एक मूर्ति को विधिपूर्वक तय्यार कग कर उसे स्थापित जिनसेनके शिष्य शीलाधि का शिय था और इसने कराया था, ऐसा मद्रासके अजायब घरमें मौजूद एक जैन मूर्तिक तल देश विदर गाँव में दीक्षा ली थी। नीचे खुदा हुमा है (S.I.J.58) इस राजाकी प्रशंसासे मूह विद्रि . भैरवी मडपके एक स्तंभ पर शिलालेख है। -सम्पादक
१५ बाहुबलि (ल. १५६०) . * इस कवि ने 'भुजवलिशतक' नामका एक संस्कृत ग्रंथ भी भैरवेन्द्र नामक राजाकी इच्छासे इसने नागकुमारलिखा है,
–सम्पादक कथा या पञ्चमीकथा की रचना की है । इसके पिता