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________________ अनेकान्त वर्ष १, किरण २ ११ अभिनववादि विद्यानन्द (१५३३) मोप्पेमें वादिजनोंका पराजय किया था । बहुत करके वे इन्होंने 'काव्यमार' नामक ग्रन्थमें काव्योपयोगी ये ही अभिनव वादिविद्यानंद होंगे । गैरसोप्पेका ही आवश्यक विषयों पर पूर्व कवियोंके चने हुए पद्योंका नाम भल्लातकीपुर है । यही इनका निवासस्थान था । मंकलन किया है । इसमें प्रत्येक विषयका एक एक इन्होंने काव्यसारके अतिरिक्त कनड़ी में एक और स्वअध्याय है और सब मिलकर ४५ अध्याय तथा ११४३ तंत्र ग्रन्थ लिखा है, ऐमा मालूम होता है। पद्य हैं । मल्लिकार्जुनके मृक्तिसुधार्णव (ई० म०१२४५) १२ माल्व (लगभग १५५० ) ग्रन्थके माथ इस ग्रन्थकी बहुत समानता है । इसमें इनके बनाये हुए भारत, रमरत्नाकर, वैद्यमांगत्य बड़ी भारी विशेषता यह है कि जिन जिन ग्रंथोंसे पद्य और शारदाविलास नामके चार ग्रन्थ उपलब्ध हैं । लिये गये हैं उन सब ग्रंथोंके और कवियोके नाम भी ये धर्मचन्द्रके पुत्र और देशीयगणके विनप्रकीर्तिके पुत्र दे दिये हैं । इसमें नीचे लिग्वे कवियों के पद मंक- श्रुतकीनिके शिष्य थे। साल्वमल इनके आश्रयदाता लित हैं या पापक थे। गणवर्म प्रथम (लगभग ई०स०९००), श्रादि पंप इनका 'भारतसाल्व' भारतके नाम प्रसिद्ध है । (९४१), नागवर्म प्रथम (ल०९९०), रन्न (९९३), नाग- इसमें १६ पर्व हैं और यह भामिनी प पदीमें लिखा चन्द्र (ल०११००), उदयादित्य (ल०११५०), हरीश्वर गया है । नेमीश्वरचरितभी इसका नाम है। इसमें हरि(ल०११६५), नेमिचन्द्र (११७०), रुद्रभट्ट (ल०११८०) वंश और कुरुवंरके चरित्र हैं। कविन प्रेरणा की है कि अग्गल (११८५), वाणीवल्लभ(ल०११९५), पार्श्वपंडित दोषयुक्त भारत(महाभारत) न सुनकर लोग इस जिन(१२०५), जन्न (१२०९), अण्डय्य (ल०१२३५), कमल- पावनचरितको सुनें । ग्रन्थारंभमें नेमिजिन, सिद्ध, भव (ल०१२३५), गुणवर्म द्वितीय (ल०१२३५), मधुर गणधर, जिनधर्म, कूष्मांडिनी, सर्वाग्रह यक्ष, सरस्वती (ल०१३८५), चन्द्रशेखर (ल०१४३०) केवलि,श्रुतकेवनि 'प्रथमांगधारीपर्यंतस्तुति की है और पहले विद्यानन्द नामके अनेक जैनगुरु हो चुके फिर गृद्धपिंछ, मयूरपिंछ, अर्हद्वलि, पुष्पदंत, भूतबलि, थे, जान पड़ता है इसी कारण इन्होंने अपने नामके जिनचन्द्र, कोंडकुंदाचार्य, तत्त्वार्थस्त्रकार उमास्वाति माथ 'अभिनववादि' विशेषण लगाया है । नगर समन्तभद्र, कविपरमेष्ठी, पूज्यपाद, वीरसेन, जिनसेन, तालकाके ४६वे शिलालेखमें एक वादिविद्यानन्दकी नमिचंद्र, रामसेन, अकलंकदेव, अनंतवीर्य, विद्यानंद, स्तुति की गई है, जो वादिजनोंको जीतनमें बहुत माणिक्यनंदि, प्रभेन्दु, रामचन्द्र, वासवेन्द्र, गुणभद्र, ही चतुर थे। उन्होंने नंजराय शहरके नंजिदेवराज माघनन्दि, चारुकीर्ति, विशालकीर्ति, विजयकीर्ति सुन सातवेंद्रराजा, केमरीविक्रम, साल्वमल्लिराय, गुरु- स्वगुरु श्रुतकीर्ति, महिभुषण, पोलादिदेव, मेरुनन्दि, नृपाल, सालुवदेवराय, नगरिराज्यके राजा, बिलिग ममन्तभद्र, और पाल्यकीर्तिका स्मरण किया है। के नरसिंहराज, कारकलके भैरवराज, नरसिंहकुमार रसरत्नाकरमें रसप्रक्रियाका प्रतिपादन किया (१५०९-२९) और कृष्णराजकी सभाओं में और इसी गया है। इसमें श्रृंगारप्रपंच, रसविवरण; नायकप्रकार श्रीरंगपट्टण, विदिर,कोपण, बेलगुल, और गैर- नायिका-विवरण और भावाधिकरण ये चार अध्याय
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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