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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण २ वणिकशिरोमणि सगणण्ण और माता बोम्मलदेवी में है और इसमें १३१२ पद्य हैं । इसमें मंगलाचरणके थी। यह कर्नाटक देश में कुंदाद्रिके दक्षिण में बसी बाद नीचे लिखे हुए आचार्यों को नमस्कार किया है। हुई शृंगेरी का रहने वाला था जिमका कि दूसरा नाम भद्रबाहु, गुणभद्र,समन्तभद्र, इन्द्रनन्दि, महानन्दि, दक्षिण वाराणसी है।
सिंहनन्दि, वीरनन्दि, वीरसेन, नयसेन, वीराचार्य, बाहुबलिका इस प्रन्थको समाप्त करने के पहले चन्द्रप्रभ, शुभचन्द्र, नेमिचन्द्र, पूज्यपाद, कोंडकुंद, ही देहान्त होगया, इस कारण इसे वर्धमान नामक कविपरमेष्ठी, चारुकीत्ति पंडित, अकलंक, चन्द्रप्रभ, कवि ने पूर्ण किया जो कि बहुत करके बाहुबलिका ही विद्यानन्द, प्रभेन्दु, श्रुतकीर्ति, । पत्र था । वर्धमान नरसिंह भारती (१५५७-१५७३) का
१७ दोहणांक (१५७८) ममकालीन था । उमे कवि राजहंस, संगीतसुधाब्धि- यह होय्सल देशके निट्टर आदिसेट्टिके पुत्र चन्द्र ये गौरवाद पदवियाँ प्राप्त थीं। उसने नीचे लिखे वेदृदि-सेट्टिका पुत्र था । इसने ई. सन् १५७८में चन्द्रकवियों का उनके ग्रन्थों महित स्मरण किया है- प्रभषट्पदी नाम का ग्रन्थ रचकर समाप्त किया है। __ श्रादिपंप (आदि पुराण), कन्तिक (जो वीरदोर
१८ पद्मरस (१५६१) की सभा की मंगल लक्ष्मी थी), अग्गल (चन्द्रप्रभ- अखिल शास्त्रविशारद महावादिमदेभमृगेन्द्र तर्कपुगण), वागणकादम्बरी को हतप्रभ करके अपनी शब्दागमज्ञ, जैनसंहिताकर्ता श्रीवत्सगोत्रीय ब्रह्मरि लीलावती पर पारितोषिक प्राप्त करने वाले नेमिचन्द्र,
पण्डित राजसन्मानित विद्वान थे। उनकी सन्तति में जन्न, गर्म, रन्न, पोन्न, और ज्योतिषविद्यामें अप्र- वैद्य-मंत्र-दैवज्ञ-शास्त्र-कोविद पद्मन्नोपाध्याय का जन्म गण्य वादिघ्रातभयंकर श्रीधराचार्य ।
हुआ । पारस उन्हीं का पुत्र था । इसने 'श्रृंगार कथा' __ मंगलाचरणकं बाद परमपुराणकथा का विस्तार
नामक ग्रन्थ की रचना की है । इसे उसने केलसुरकी करनवाले द्वितीयगणधर कविपरमेष्ठी, कुमुदेन्दु, श्रीध- चन्द्रनाथ वस्तीमें ई० स० १५९९ में समाप्त किया है। गचार्य, अकलंक, पूज्यपाद, म्वपरमगुरु ललितकीर्ति, के
केलसर का दूसरा नाम छत्रत्रयपुर है। गुमशान्तिकीर्तिका म्मरण किया है और फिर पद्मावती,
शृंगार कथा में सुखनिलयपुरके राजा रत्लभुषणके मरम्वती, कूष्मांडिनी, सर्वाण्ह यक्ष की स्तुति की है।
पुत्र सुकुमार की कथा वर्णित है । इसमें कथाभाग १६ श्रुतकीति (१५६७) बहुत ही थोड़ा है । शृंगारवर्णन ही अधिक है । इसमें इसके पिता अकलंक और पितामह कनकगिरिक ५ सन्धियाँ और ५३३ पद्य हैं। मदनतिलक, मल्लिकाविजयीत्ति थे। रामचन्द चन्दनवर्णी भी इसका जनविजय, भरतेश्वरचरित, कुमररामनकथा नामक नाम था। इसनं विजयकुमारीचरित नाम का प्रन्थ पूर्वके प्रन्थों का नाम निर्देश किया है। लिखा है, जिसमें इनद्रियों को जीतने वाली विजय- यह कवि जैन है फिर भी इस प्रन्थके प्रारंभमें कुमारी की कथा है। पहले यह कथा आर्यभाषा उसने शिवस्तुति की है ! जान पड़ता है कि किसी (संस्कृत ?) में थी, इसे जैनोत्तमोंके इच्छानुसार कनड़ीमें अजैन की प्रेरणासे लिखा गया होगा। लिखता हूँ, ऐसा कविने लिखा है । यह सांगत्य छन्द
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