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________________ पौष, वीर नि०सं० २४५६] स्वाथ्यरक्षाके मूलमन्त्र राज्य में किसी अच्छे पद पर प्रतिष्ठित थे और एक से जरूर मिल जायगा। जैनसमाजमें अपने प्राची बहुत बड़े अजैन विद्वान थे। स्वामी समन्तभद्रके साहित्य के उद्धारका कुछ भी उल्लेखनीय प्रयन्त नहीं है 'देवागम' स्तोत्रको सुनकर आपकी श्रद्धा पलट गई थी, रहा है-खाली जिनवाणीकी भक्तिके रीते फीके गीर आप जैनधर्म में दीक्षित हो गये थे और राजसेवाको गाए जाते हैं और इमी से जैनियोंका सारा इतिहास भी छोड़ कर जैनमुनि बन गये थे । आपका आचार अन्धकारमें पड़ा हुआ है और उसके विषयमें सैंकड़े पवित्र और ज्ञान निर्मल था । इसीसे भगवज्जिनसेना- ग़लतफहमियाँ फैली हुई हैं । जिनके हृदय पर साहित्य चार्य जैसे आचार्योंने आपकी स्तुति की है और आपके और इतिहासकी इस दुर्दशाको देख-सुन कर चोट प्रति निर्मल गुणोंको विद्वानोंके हृदय पर हारकीतरहसे पहुँचती है और जो जिनवाणीके सच्चे भक्त,पूर्वाचार्योंके आरूढ बतलाया है । श्रापन नहीं मालम और कितने सच्चे उपासक अथवा समाजके सच्चे शुभ चिन्तक हैं प्रन्थोंकी रचना की है। पात्रकेसरिस्तोत्र आदि परसे उनका इस समय यह खास कर्तव्य है कि वे साहित्य आपके ग्रन्थ बड़े महत्वके मालूम होते हैं । उनका पठन- और इतिहास दोनोंके उद्धारके लिये खास तौरसे पाठन उठ जानेसे ही वे लुप्त हो गये हैं। उनकी जरूर अग्रसर हों, उद्धारकार्यको व्यवस्थित रूपसे चलाएँ खोज होनी चाहिये । 'त्रिलक्षणकदर्थना' ग्रन्थ ११ वीं और उसमें सहायता पहुँचानेके लिये अपनी शक्ति भर शताब्दीमें मौजूद था, खोज करने पर वह जैनभंडारोसे कोई भी बात उठा न रक्खें । नहीं तो बौद्धशास्त्रभंडारोसे-तिब्बत, चीन, जापान, कादिकाला ता० १६-१२-१९२९ जुगलकिशोर मुख्तार 'नक स्वास्थ्यरक्षाके मूलमन्त्र [ले०–श्रीमान राजवैद्य शीतलप्रसादजी ] - (गतांकसे आगे) नीरोग रहना अथवा आरोग्य क्या वस्तु है, इसे भिषग्वर वाग्भट्टने इस आरोग्यदशाकी प्राप्तिके यदि संक्षेपसे दो शब्दोंमें कहा जाय तो इतना कह लिये अपने उक्त पद्यमें स्वास्थ्यरक्षाविषयक शरीरनीति सकते हैं कि,इस शरीर रूपी यन्त्रक सम्पूर्ण अवयवोंका कोलियेहुएशारीरिक सदाचारोंका(सातावेदनीय कर्मके -कलपुरजोंका-यथोचित रूपसे अपना अपना काम उपार्जनके कारणोंका) जो समावेश किया है वह सच करते रहना और मन, इन्द्रियों तथा आत्माका प्रसन्न मुच सागरको गागरमें ही भरा गया है । शारीरिक बना रहना आरोग्य है-स्वास्थ्य भी इसीका नामान्तर सदाचार-सम्बंधी आपके वे सब उपदेश स्वास्थ्यरक्षा है। जो लोग इस आरोग्य दशाको प्राप्त अथवा स्वा- के मूलमंत्र हैं। स्थ्यसम्पत्तिसे विभूषित होते हैं उन्हें ही स्वस्थ, नीरोग वास्तवमें, शारीरिक सदाचार ही आरोग्यरत्लकी अथवा तनदुरुस्त कहते हैं। रक्षा करनेवाले हैं और दुराचार उसको बिगाड़ने तथा
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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