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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण २ के मूलसूत्रकार श्रीअकलंकदेव के सामने भी पात्र- समयदीपक...रम् उन्मीलित-दोष-क...रजनीचरकेसरिविषयक यह सब लोकस्थिति मौजूद थी और बलं उदबोधितं भव्यकमलम् आयत् अर्जितम् उन्होंने उस पर विचार किया था और उस विचारका अकलंक-प्रमाण-तपन स्फु ...... । ही यह परिणाम है जो उन्होंने सीमंधर या पात्रकेमरी इससे पात्रकेसरीकी प्राचीनताका कितना ही पता दानों में में किसी एक का नाम न देकर दोनों के लिय चलता है और इस बातका और भी समर्थन होता है समानरूप से व्यवहृत होने वाले 'स्वामिन्' शब्दका कि वे अकलंकदवसे पहले ही नहीं किन्तु बहुत पहले प्रयोग किया है। ऐसी हालतमें पात्रकेमरास्वामी विद्यानंद हए हैं। अकलंकदेव विक्रमकी ७ वी ८ वीं शताब्दीके सं भिन्न व्यक्ति थे और वे उनसे बहुत पहल हो गए हैं. विद्वान हैं, वे बौद्धतार्किक 'धर्मकीर्ति' और मीमांसक इस विषय में संदेहका कोई अवकाश नहीं रहता; विद्वान कुमारिन' के प्रायः समकालीन थे और विक्रम बल्कि माथ ही यह भी मालम हो जाता है कि पात्र- संवत् ७०० में आपका बौद्धोंके माथ महान वाद हुआ केसरी उन अकलंकदव से भी पहले हुए हैं जिनकी था, जिसका उल्लेख 'अकलंकचरित' के निम्न वाक्यमे अष्टशती को लेकर विद्यानन्दन अष्टमहस्री लिखी है। पाया जाता है:___(८) बेलूर ताल्लुकेके शिलालेग्वनं०१७ में भी पात्र- विक्रमार्क-शकाब्दीम-शतसप्त-प्रमाजपि । केसरीका उल्लेख है। यह शिलालेख रामानुजाचार्य-मंदिर कालेऽकलंक-यतिनो बौदैर्वादो महानभूत् ॥ के अहातेके अन्दर सौम्यनायकी-मंदिर के छनके एक और वननन्दी विक्रमकी छठी शताब्दीमें हुए हैं। पत्थर पर उत्कीर्ण है और शकसंवत १०५९ का लिखा उन्होंने वि० सं०५२६में 'द्राविड' संघकी स्थापना की
है, ऐसा देवसेनके 'दर्शनसार' ग्रन्थमे जाना जाता है। हुआ है । इममें समन्तभद्रम्वामीके बाद पात्रकंसर्ग
इससे पात्रकंसरीका ममय छठी शताब्दीसे पहले का होना लिखा है और उन्हें समन्तभद्रक द्रमिलमंघ पाँचवीं या चौथी शताब्दीके करीब जान पड़ता है। जब कांग्रेसर मचित किया है। साथ ही,यह प्रकट कियाहै कि विद्यानन्दका समय प्रायः ५वीं शताब्दीका ही है। कि पात्रमरीके बाद क्रमशः वक्रग्रीव,वननन्दी,सुमति
अतः इस संपूर्ण परीक्षण,विवेचन और स्पष्टीकरण भट्टारक (देव) और समयदीपक अकलंक नाम के पर म यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि स्वामी प्रधान आचार्य हुए हैं । यथा
पात्रकेसरी और विद्यानन्द दा भिन्न प्राचार्य हुए हैं...तन् . ... त्थयमं सहस्रगणं माडि समन्त- दोनोंका व्यक्तित्व भिन्न है, ग्रन्थसमूह भिन्न है और भद्रम्वामिगलु मुन्दर अवरिं बलिक तदीय समय भी भिन्न है । और इस लिषे 'सम्यक्त्वप्रकाश'
के लेखकन यदि दोनोंको एक लिख दिया है तो वह श्रीमद्रमिलसंघाग्रेसर अप्पपात्रकेसरि-स्वामि
उसकी स्पष्ट भल है । पात्रकेसरीस्वामी विद्यानन्दसे कई गलिं वक्रग्रीवाभि ... ..रिन्द्र अनन्तरं।
शताब्दी पहले हुए हैं । वे ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुएथेक, यस्य दि......न् कीर्तिवलोक्यमप्यगात् ।। * पात्रकसरीकी कथाके अतिरिक्त विद्यानन्दिकृत 'सुदर्शनचरित्र' के ...येव भात्येको वज्रनंदी गुणाग्रणीः॥ निम्न वाक्यसे भी यह मालूम होता है कि पात्रकेसरी ब्राह्मणाकुलमें अवरि बलिक समति-भट्टारकर प्रवरिं बलिक... उत्प
उत्पन्न हुए थेः
विप्रवेशाग्रणीः सूरिः पवित्रः पात्रकेसरी । * देखो, 'एपिग्रेफिका कर्णाटिका' जिल्द ५ भाग १ला
सजीयाजिनपादाब्जसेवनकमधुवतः ॥