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पौष, वीर नि०सं० २४५६] स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द पाठक महाशयने ही इस प्रमाणको पहले उपस्थित सत्यवाक्याधिपाः शश्वविद्यानन्दाः जिनेश्वराः किया है। परन्तु पहले चाहे जिसने उपस्थित किया हो,
-प्रमाणपगक्षा। किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि यह प्रन्थ अपने उक्त विद्यानन्दैः स्वशक्तया कथमपि कथितं सत्यवाक्यको लेखन-शैली परसे बहुत कुछ आधुनिक जान वाक्यार्थसिद्धये ॥ -आपपरीक्षा । पड़ता है-आश्चर्य नहीं जो वह उक्त 'ज्ञानसूर्योदय'
(२) विद्यानन्दके बाद होने वाले प्रभाचन्द्र और नाटकसे भी अर्वाचीन हो-और मुझे इस कहनमें
म वादिराज जैसे प्राचीन प्राचार्योन भी ‘विद्यानन्द' जगभी संकोच नहीं होता कि यदि इस ग्रंथके कर्ताने
नाममे ही आप का लल्लेख किया है । यथा:"श्लोकवानिक विद्यानन्यपरनामपात्रकसरिस्वामिना यदुक्तं तच्च लिख्यते" यह वाक्य इमी
विद्यानन्द-समन्तभद्रगणतो नित्यं मनानन्दनम् रूपम दिया है तो उसे इसके द्वारा विद्यानन्द और
-प्रमयकमलमार्तण्ड । पात्रकंसरी स्वामीको एक व्यक्ति प्रतिपादन करनेमें
ऋजुसत्रं स्फुरदन्न विद्यानन्दस्य विस्मयः । जरूर भ्रम हुआ है अथवा उसके समझनेकी किसी
शृण्वतामप्यलंकारं दीप्तिरंगेपु राति ॥ ग़लनीका ही यह परिणाम हैक्योंकि वाम्नवमें पात्र
-पार्श्वनाथ चरित। केसरी स्वामी और विद्यानन्द दोनोंका एक व्यक्तित्व (३) शिलालेग्वामें भी विद्यानन्द' नाममे ही मिद्ध नहीं होता-प्राचीन उल्लेखों अथवा घटनासमह श्रापका उल्लेख मिलता है और यह कहीं सचिन परमे वे दो भिन्न प्राचार्य जान पड़ते हैं। और यह नहीं किया कि विद्यानन्द का ही नाम पात्रकेमरी है। बात, ऊपरक इममपर्ण परीक्षण तथा विवंचनको ध्यान प्रत्युत इमक, हुमचाके उक्त शिलालेग्य में जिमका में रम्बन हुए, नीचे दियं म्पष्टीकरण पाठकोंको और परिचय ऊपर दिया जाचुका है दोनोंको अलग अलग भी स्पष्ट हो जायगी:
गुरु मूचित किया है। उममें भट्टाकलंक के बाद विद्यादोनोंकी भिन्नताका स्पष्टीकरण
नन्दकी स्तुतिके तीन पद्य दिये हैं और उनमें आपकी (१) विद्यानन्द म्वामीन म्वरचित कवाति- कृतियां का-आप्रमीमांसालंकृति (अष्टमहस्री) प्रमाणकादि किसी भी प्रथमें अपना नाम या नामान्तर
1 परीक्षा, प्राप्रपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, विद्यानन्दमहोदय और 'पात्रकेसरी' नहीं दिया किन्तु जिम निम प्रकारम
लोकवानिकालंकारका-उल्लेख करतहुए. सर्वत्र आपका 'विद्यानन्द' काही उल्लेख किया है। विद्यानन्द' के
विद्यानन्द नामम ही उल्लेम्वित किया है । यथा:अतिरिक्त यदि उन्होंन कहीं पर किमी तरह अपना अलंचकार यम्सावमाप्तमीमासितं मनं । कोई उपनाम, उपाधि या विशेषण मचित किया है स्वामिविद्यादिनन्दाय नमस्तम्मै महात्मने । तो वह सत्यवाक्याधिप' या 'मत्यवाक्य है। जैसा कि यः प्रमाणातपत्राणांपरिक्षाः कृतवान्नमः। निम्न अवतरणों से जान पड़ता है-
विद्यानन्दस्वामिनं च विद्यानन्दमहोदयं।। विद्यानन्दबुधैरलंकृतमिदं श्रीसत्यवाक्याधिपः विद्यानन्दस्वामीविरचितवान् श्लोकवार्तिकालंकारं
-युक्त्यनुशासनटीका। जयनिकविविधतार्किकचडामणिरमलगणनिलयः