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अनेकान्त
- [वर्ष १, किरा. ११, १२ भी दिगम्बर प्रन्थोंकी तरह कुछ कुछ मतभेद दृष्टिगोचर उपाध्यायजीने अपनी प्रति परसे जो उनको जाँचा तो होता है। आशा है हमारे श्वेताम्बर विद्वान इम विपय उसमें भी वे सब पद्य पाये गये हैं और इसलिये वे इस का खुलासा भी प्रकट करेंगे।
निश्चय पर आ गये हैं कि दोनों प्रतियों एक ही ग्रन्थ ४ कर्णाटक जेनकवि
की हैं। ऐसी हालतमें यह प्रन्थ योगीन्द्र देवका रचा हुआ
है या रामसिंहका, यह निःसन्देह एक कठिन समस्या कर्णाटक जैन कवियोंका जो पूरा परिचय उपयोगी उपस्थित हो गई है, क्योंकि एक प्रतिकी पुष्पिकामें अनुक्रमणिकाओं के साथ पुस्तकाकार निकालनकी प्रे- योगीन्द्र देवका नाम दिया है और दूसरेकी पुष्पिकामें रणा गत किरणमें(प० ४८८ पर) की गई थी और उस गमसिंहका नाम पाया जाता है। इससे इस प्रन्थकी के लिये २००१ म०के करीब लागतका तस्वमीना किया अन्य प्रतियाँ भी वोजी जानी जरूरी हैं। विद्वानोंको गया था, उस पर अभी तक किसी भी दानी महाशयन अपने अपने यहाँ के भण्डारोंको देख कर उसकी स. कोई लक्ष्य नहीं दिया। हाँ, बाबू माईदयालजी बी. ए. चना दना चाहिय । रहा कुछ पद्याम रामासहका नाम
हानकी बार उसके विषयमें उपाध्यायजीन एक कल्पना ने यह इच्छा जार व्यक्त की है कि वह पुस्तक अवश्य
यह उपस्थित की है कि परमात्मप्रकाशके पद्य नं०१८८ छपनी चाहिये और साथ ही उन्होंने उसके लिये दस में जैसे 'भाउ संति भणेई" के द्वारा 'शान्ति' रुपयेकी सहायताका भी वचन दियाहै । आशा है दूसरे
पा नामका उल्लेख किया है। कहीं उसी प्रकारका यह रामसज्जन भी इस ओर ध्यान देंगे, जिससे उसके छपान सिंहका उल्लेख तो नहीं है। अतः इसकी भी जाँच होने बादिकी योजना की जा सके। ऐसी पुस्तकोंके प्रका- की जरूरत है। यदि ऐसा हो तो रामसिंह योगीन्द्रदेवसे शित करने में समाजका गौरव है और उनसे उसके इ- भी पहलेके कोई प्राचीन विद्वान ठहरते हैं। तिहासाविक पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है।
६ योगमाग ५दोहा-पाहड
यह किरण धारणासे बहुन बढ़ गई और पिछली श्री० ए.एन. उपाध्यायजीके भेजे हुए अंग्रेजी लेख
तीन किरणों जितनी मोटी हो गई,फिर भी इसमें 'योग
भार्ग नामके लेखको देनेका अवसर नहीं मिल सका, काजो अनुवाद योगीन्द्रदेवका एक और अपभ्रंशमंथ'
जिसका निःसन्देह खेद है ।पाशाहै इसके लिये पाठक नामसे अनेकान्तकी गत किरणमें प्रकाशित हुआ है
तथा लेखक महाशय क्षमा करेंगे ।नये वर्षसे इसका उस पर नोट देते हुए देहलीकी 'दोहापाहुर'की प्रतिका ठीक सिलसिला शुरू किया जायगा। अब परिचय कराया गया था और यह सूचित किया ७ समालोचनाथे प्राप्त पस्तक गया था कि उसमें उसके कर्वाका नाम 'रामसिंह' मुनि
कुल पुस्तकें समालोचनाके लिये प्राप्त हुई रस्सी - दिया है। साथ ही, उसके कुछ पचोंको उद्धृत करके हैं। अनवकाशके कारण उनकी अभी तक कोई समायह भी बतलाया गया था कि उसमें मात्र दोहे ही नहीं लोचना नहीं की जा सकी और न कुछ परिचय ही किन्तु दूसरे बन्द भी हैं और वह मात्र अपभ्रंश भाषा दिया जा सका है। अगले वर्ष में समालोचनाई नाम में तीनही किन्तु उसमें प्राकव तया संतभी से 'भनेकान्त' की एकतीही खास किरय निक पच पाये जाते हैं और उन सबको अपनी प्रति परसे लनेका विचारमा उस समय सब पर यहचान जाँचनेकी ८ उपाध्यायजीको प्रेरणा की गई थी। रिवाजावगा। प्रेषक महाराय रखन।