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________________ ip :: *SS : * ...... . समन्तभद्राश्रम-विज्ञप्ति नं. ३ लमप्राय जनग्रंथोंकी ग्वाज समन्तभद्राश्रम 'माहित्यिक पारितोषिक फंड नामका एक विभाग यांना गया है, जिसका पहला कार्य होगा । लप्रप्राय जैनप्रन्याकी म्यांज । बहुनम महत्व प्राचीन ग्रन्थ म है जिनके | नामादिकका पता ना च नना है-किननाक वाक्य भी उदधन मिलन है परंतु व प्रन्थ मिलन नहीby मानम नहीं कौनम भगद्वारकी कानकोटगमे पड़े हुए अपना जीवन शेप कर रह है. अथवा कर चकं : । हैं। जिनवाणी माता के भनी अथवा जनी कहलाने वाला गिय यह एक बड़े ही कलंक नथा लजा का विषय है जो अभी तक उनकी प्योजक निय काई मंगटिन प्रयान नहीं किया गया। यदि म प्रथाको ग्योजक निय पारितोपिक निकाला जाय ना उमम बहनाको शाम भंडागको अन्द्री नरहने । टटोलनकी प्रेरणा हो सकती है। और इस तरह कितने ही प्रथाका पना बनकर उनका उद्धार होनेकी । अभी पूर्गमभावना है। यदि कुछ दिन और एमीनापर्वाहीम बान गय ना या, संभावना भी मिटी जायगी और फिर किमी मी मल्य अथवा व्यय पर उनका दर्शन नही हो मकंगा-कवान परतावा ही पहनावा अवशिष्ट रह जायगा: क्योकि अधिकांश भंडागं की हालत बड़ी ही शोचनीय है और उनमेमे दिन पर दिन नष्ट भ्रष्ट नथा ना हान चले जान है। अन इस विषय में अब जग भी लापवाही नही होनी चाहिए । इमानि श्राज ममाज के मामले मही कुछ प्रन्यन्नांक नाम कन्वं जान है जिनकी ग्वानकी मान जमात है और जिनका ग्याज के लिय । पारितोषिक नियत किया जाना चाहिंय माधही. प्रगक अन्य पर जा पाग्निापिक दिया जाना चाहिये । उमं भी मचित किया जाना है। श्रार जिनवागी मानके मना नया पगनन नाचायांकी कीनियाम । प्रेम रखने वाले माजनांम प्रार्थना की जानी है कि वे जिम प्रत्यक उद्वारा अपनी श्रोग्म पाग्निीपिक दना म्वीकार करें उमम शीत्र मचित करे. जिमम म्याज करने वानी के लिये कुद मनकि माथ पारितापिककी घोषणा निकाली जाय और याजका काम मात्र प्रारंभांजाय। एक माथ बातम प्रथाकी पारितोषिक घोषणा निकलने पर प्याज के कामम लोगांकी निक प्रनिहांगी. मममंगकि हनन प्रथाम में कोई ना उम भडाग्मे मिनंगा और इनिये उनका पत्रिमय नही जायगा। प्रत. इन मभी प्रन्या पर शीघ्र ही पाग्निापिक भग जाना चाहिए। जो भाई जिम प्रन्थ पर पारितोषिक देना म्वीकार करेंगे प्रत्यकी प्रानि होनेपर वह उटी नाम दिया जायगा । पाशाम महान पुन्य कार्यम मभी धर्मप्रेमी मन्जन श्रोर ग्यामकर व महानभाव जमा भाग लंगे जिनक, हदय में । प्राचीन कीनियाक लापको सुनकर एक प्रकारका दर्द पैदा होता है। जो भाई किमी एक अन्य पर पग : पारितोषिक देने के लिये ममर्थ न ही वे वे ही अपनी शान के अनमार हम फं.दको महायता दमकन । हैं, जिसमें श्राश्रम उनकी महायतानमार पारितोषिककी व्यवस्था करमकं । श्राश्रमका उम फंड नियं। रुपयकी पूरी जान है । यहां पर यह प्रकट कर दना भी उचित जान पहना है कि इन पनियोंक ... लम्बकने पहले दो प्रन्या पर म पारितोषिक देना बांकार किया है । दमा प्रथा पर : पारितोषिककी बीकारना भान पर पाग्निापिककी घोषणा वाली विधि शीघ्र ही प्रकट की जायगी। उदारहत्य व्यनियों को अपनीम्बीकारना भेजकर हम विपयम अपनकनत्र्यका शीघ्र पान्नन करना चाहिय-१
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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