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________________ पारिवन, कार्विक, बीरनि०सं०२४५६] विषिष विषय विविध विषय १ पारितोषिककी अवधि-वद्धि अपने लेश्वमें, जो अनेकान्तकी ज्वी किरणमें पृ० ३६० . पर मुद्रित हुआ है, एक बात यहभी लिखीधी किश्वेतालमप्राय जैनप्रन्थोंकी खोजक भान्दोलनको उठाये - म्बर ग्रंथों में भेणिकके पूर्व भवोंका वर्णन नहीं मिलता। हुए साल भर हो गया और ५ महीने उस विज्ञप्रि . इसका प्रतिवाद करते हुए कलकत्तेसे मुनि दर्शनविजनं०४ को प्रकाशित हुए भी हो चुके, जिममें खोज यजी लिखने :किये जाने योग्य२७ प्राचीन ग्रंथांका कछ विशेष परि ___ "यह उल्लेम्व सत्यशिसे दूर है क्योंकि श्रीहमपन्द्र चय दिया गया था, उनके लिये १५०० म०पारितोषिक मरिजीन त्रिपाठशलाका चरित्रान्तर्गत महावीरचरित्र की योजना प्रकाशित की गई थी-यह प्रकट किया पर्व १० में श्रेणिकके पूर्वभवका वर्णन दिया है। गया था कि किम किस प्रन्थको खोजने वालेको किन शोंके माथ क्या पारितोपिक दिया जायगा-और ३ तीर्थंकरोंके चिन्ह माथ ही योजकर्ताओं तथा दूसरं सज्जनोस कुछ विशेष 'अनकान्त' की दूसरी किरण में प्रकाशित 'तीर्थकरों निवेदन भी किया गया था । परन्तु अभी तक समाज के चिन्होंका रहस्य' नामक लग्य पर जो सम्पादकीय ने इस ओर कुछ भी ध्यान नहीं दिया । उमीका परि- नोट दिया गया था उममेश्वेताम्बगेकी मान्यताका कार्ड णाम है जो खोज-सम्बंधी कहीं में भी कोई समाचार उल्लेग्य नहीं किया गया था । इम पर मुनि दर्शनविजय. नहीं मिल रहा है और इम कामकं लिये ३१ अगम्न जी, उक्त नाटका अभिनन्दन करने और उसे पसन्द सन् १९३० तककी जो अवधि रकाबी गई थी उसको करते हुए, श्वेताम्बरीय मान्यता इस विषय में क्या है पूर्ण हुए भी ढाई महीने बीत चुके हैं । जैनसमाज और उसका निम्न दो पयों द्वारा मचित करने हैं, जो प्रसिद्ध खासकर जिनवाणी माताकी भक्तिका दम भग्नवालों चनाम्यगचार्य श्रीहम चन्द्रमरिक अभिधानचिन्तामणि' के लिये यह निःसन्दह एक बड़ी ही लज्जाका विषय है नामक काशकं पा हैं :जो वे इस ओर कोई ठोस प्रयत्न न करें। प्रन्थ मब प्रा- वपोगनांऽश्चः प्लवगः क्रौञ्चोऽम्बनिकःशशी। चीन तथा खास महत्वके हैं और उनके मिलने पर जैन करः श्रीवत्मः खत्री महिपः सकरस्तथा ॥४७|| साहित्यकी बहुत ही श्रीवृद्धि होगी । अतः विद्वाना तथा शासभंडारोके संरक्षकोंको इम और स्त्राम यांग दना श्यना बज मृगश्छागो नन्याव घटोऽपि च। चाहिये । उन्हें इस बार प्रोत्साहित करने के लिये पारि- को नीलोत्पलं शंग्वः फणी मिहाना बनाleतोषिककी साध ३१ मई मन् १९३१ तक बढ़ा -वाधिदवकाग। इनमें स्पष्ट है कि श्वनाम्मर सम्प्रदायमें भी इन दगई है । इस श्रम तक जो भाई किमी भी अन्य की । खोज लगाएँगे वे नियत पारितोपिक पान के हकदार चिन्होंका नीर्थकगंकीवजाओंके चिह माना गया है। व होंगे। जिन्हें ग्रंथोंका परिचय तथा शने आदि जानने हो, चिन्हमें इतना विशेष है कि सुमतिनाथ, शीतलके लिये उक्त विज्ञप्रि नं०४की आवश्यकता हो वे उम नाथ, अनन्तनाथ और भग्नाथके शोचिन्ह पजामारादि दिगम्बर प्रन्योंमें क्रमशः कोक, श्रीवत, शल्य-शेष, की कापी पाश्रमसे मंगा सकते हैं। पोर मस्य-मेष दिये हैं उनके स्थान पर हमचन्द्राचार्य मशः कोच (बगला), श्रीवन्म, श्यन, (बाल) उत्तरपुराणमें श्रेणिकके पूर्वभव-वर्णन-बाने पाठ और नंद्यावर्तका विधान किया है। मालूम नहीं सभी परमापति करते हुए, मोबनारसीदासजी एम.ए. ने श्वेताम्बर प्रन्यों में ये ही चिन्द माने गये हैं या उनमें न
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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