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________________ ६७० थोड़ा है। --- O हाता#fo भनेकान्त [वर्ष १, किरण ११, १२ अपनी लागतसे तय्यार कराया है और 'भनेकान्त'को इसकी कापियाँ भेट की हैं । अतः उनकी इस कृपाके लिये जितना भी आभार प्रदर्शित किया जाय वह इस किरणके प्रारंभमें जोसुन्दर तिरंगा चित्र लगा है उसका कोई विशेष परिचय देनेकी जरूरत नहीं हैवह दर्शकोंको अपना परिचय खुद ही दे रहा है। फिर मेरे मनका उद्गार भी इतना जरूर बतला देना होगा कि एक निर्जनस्थान में जलाशयके तट पर, जिसमें कमल फूल रहे हैं, वृक्ष ___ सजनों ! आज मैंने 'अनकान्त' की दसमी किरण के नीचे एक निग्रंथ दिगम्बर मुनि पद्मासन लगाये " समाप्त की है । मेरे मनमें जो श्रद्धा इस पत्रके संगमे ध्यानारुढ बैठे हैं, उनके रोम रोमस शांति तथा वीत पैदा हो गई है उसको मैं शब्दों द्वारा कहनेको असमर्थ गगता टपक रही है और माता ही नहीं हूँ किन्तु अयोग्य भी हूँ; परन्तु मेरे मनका उन्होंने अपनी आत्मामें अहिंसाकी पूर्ण प्रतिष्ठा करली उद्गार न रुक सका इस वास्ते आप सज्जनोंका कुछ है- अहिंसाकी साक्षान् मूर्ति बने हुए हैं-इसीसे अमूल्य समय लेता हूँ सो क्षमा करना । उनके पास एक हरिण और मामने सिंह निवग् हो कर जैनइतिहामकी खोजका जो काम 'अनकान्त' कर बैठे हैं * । हरिणके चित्तमें कुछ उद्वेग नहीं, वह सिंह रहा है वह जैनियोंके वास्ते एक अमूल्य ठोस वस्तु है। को मामने देखता हुआ भी प्रसन्न मनसे निर्भय बैठा भारतका इतिहास भी इसके बिना अधुरा ही है, इसको है, और सिंहके मुखमण्डल पर कोई करता नहीं किंतु शामिल करके ही भारतके इतिहासका गौरव बढ़ सनवताका भाव है, उसका हृदय इस समय वैर तथा कता है और यह उसके लिये सोनमें सुगंधका काम देषसे शन्य मालूम होता है और वह टकटकी लगाये और करंगा । इस लिये इस पत्रका अवलोकन करना हर मुनि महाराजकी ओर देख रहा है, मानों उनके आत्म- एक एक धर्मप्रेमीके लिये आवश्यकीय है । रहे जैनी भाई, प्रभाव और योगवलसे कीलित हुआ सब कुछ भूल ' उनको तो तन मन धनसे इसकी रक्षा करना चाहिये गया है। और शायद कुछ फासलेसे इसी लिये बैठा और परम प्रभावनाका काम समझ कर प्रत्येक मंदिर कि उससे किसीको भय मालम न हो । चतर चित्रकार जीमें इसे मंगाना चाहिए इसके सिवाय' जो विद्वान् न चित्र में, नि.सन्मेह, इन सब बातोंको लेकर अच्छा हैं-चाहे वे दिगम्बरी,श्वेताम्बरानों, स्थानवासी भाव चित्रित किया है । इस प्रकारके चित्र बरे ही हों, बाईस टोलेके हों,तेरहपंथी हों या पायी शान्तिदायक तथा ऊँचे भावों के उत्पादक होते हैं। यह उन सबको अपने अच्छे पच्छे लेखोंसे इसी पित्र भीमान बाब छोटेलालजी जैन ईस कलकत्ताने सुशोभित करना चाहिये और इस समूचे जैनसके ___*जिसके प्रात्मामें अहिंसा की प्रतिमा होतीमा का एक भादर्श पत्र बनाना चाहिये । यह परम प्रभादेवा त्याग हो जाता है, यह बात पतलिपिके निम्न वायसे बनाका काम सर्वसम्मनोंका हितेची अहिंसामविज्ञायां वत्सलियो बेरस्यागः । मानीरव जैन वर्णी प्रयास
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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