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________________ ६४८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ११, १२ सामाजिक जीवनकी घटना करना; मात्र स्त्रीत्वके का- यह भी व्यवहारकी अनुकूलताका ही प्रश्न होने से उसके रण या पुरुषत्वके कारण एककी भोगवत्ति अधिक है विधान नये सिरेसे ही करने पड़ेंगे । इस विषयमें और दूसरेकी भोगवृत्त कम है अथवा एकको अपनी प्राचीन शास्त्रों का आधार शोधन' ही हो तो जैनसावृत्तियाँ तप्त करनेका चाहे जिस रीतिस हक्क है और हित्यमेंसे मिल सके ऐसा है; परन्तु इस शोधकी मेहनत दूसरेको वृत्तियों भाग बननेका जन्मसिद्ध हक है, ऐसा करनेकी अपेक्षा "ध्रव जैनत्व" समभाव और सत्यष्टि कभी न मानना। कायम रखकर उसके ऊपर व्यवहारके अनुकूल पड़े ___समाजधर्म समाजको यहभी कहताहैकि सामाजिक ऐसी रीतिसं जैनसमाजको जीवन अर्पण करनेवाली स्मृतियाँ सदा काल एक जैसी होती ही नहीं । त्यागके लौकिक स्मतियाँ रच लेनेमें ही अधिक श्रेय है। अनन्य पक्षपाती गुरुश्राने भी जैनसमाजको बचानेके गरुसंस्थाको रखने या फेंक देनके प्रश्न-विषयमें लिये अथवा उस वक्तकी परिस्थितिके वश होकर कहना यह है कि आज तक बहुत बार गुरुसंस्था फेंक पाश्चर्य प्रदान करें ऐस भोगमर्यादा वाले विधान किये दी गई है और तो भी वह खड़ी है । पार्श्वनाथ के हैं। वर्तमानकी नई जैन स्मृतियोंमें ६४ हजार या ९६ पश्चान्मे विकृत होने वाली परम्पराको महावीरनं फेंक हजार तो क्या, बल्कि एक साथ दो स्त्रियां रखने वा- दिया इससे कुछ गमसंस्थाका अन्त नहीं पाया । चैत्यलेकी प्रतिष्ठाका प्रकरणभी नाशको प्राप्त होगा तब ही वामी गये परन्तु समाजन दूसरी संस्था माँग ही ली। जैनसमाज सम्मानित धर्मसमाजोमें मुँह दिखा सके- जतियोंके दिन पूरे होते गये उधर संवेगी साधु खड़े ही गा। आजकलकी नई स्मतिके प्रकरणमें एक साथ संस्थाको फेंक देना इसका अर्थ यह नहीं कि पाच पति रखने वाली द्रौपदोंके सतीत्वकी प्रतिष्ठा नहीं मचे ज्ञान और सचे त्यागका फेंक देना । सबा ज्ञान हो तो भी प्रामाणिकरूपमं पुनर्विवाह करने वाली और मचा त्याग यह ऐमी वस्तु है कि उसको प्रलय स्त्रीके सतीत्वकी प्रतिष्ठाको दर्ज कियेही छुटकाग है। भी नष्ट नहीं कर सकता, तब गुरुसस्थाको फेंक देनका भाजकलको स्मृतिमें चालीस वर्षमे अधिकी उम्रवाले अर्थ क्या? इसका अर्थ इतना ही है कि आजकल जो व्यक्तिका कुमारी कन्याके साथ विवाह बलात्कार या अज्ञान गमोंके कारण पुष्ट होता है, जिस विक्षेपसे व्यभिचार ही दर्ज किया जायगा । एक स्त्रीकी मौज- समाज शोषित होता है उस अज्ञान तथा विक्षेपसे दगीमें दूसरी स्त्री करने वाले अाजकल की जैनस्मृतिम बचने के लिये ममाजको गुमसंस्थाकं माथ असहकार स्त्रीघातकी गिने जायेंगे; क्योकि आज नैनिक भावनाका करना । इम असहकारके अग्नितापके समय सच्चे गुरु बल जो चारों तरफ फैल रहा है उसकी अवगणना ती कुन्दन जैसे होकर आगे निकल आयेंगे, जो मैले करके जैनसमाज सबके बीच मानपूर्वक रह ही नहीं होगे वे या तो शुद्ध हो कर आगे आयेंगे और या जल सकता । जातपातकं बन्धन कठोर करने या ढीले करने कर भस्म हो जायंगे; परन्तु आजकल समाजको जिस प्रकारके ज्ञान और त्या * ताम्बर समाजमें हियों की तरह दीपीके पांच पति। माने गये हैं, उमीको लक्ष्य करके यह कथन जान पाता है। (सेवा लेनवाले नहीं किन्तु संवा देनेवाले मार्गदर्श -सम्पादक कोंकी जरूरत है ) उस प्रकारके शान और त्यागवाले
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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